ब्रह्म - विज्ञान | Brahm - Vigyan

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Brahm - Vigyan by नारायण गोस्वामी - Narayan Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्रह्म-विज्ञान भी न आई दोती । जेसे गेहूं के झाटे में पानी डाल कर जब हम उसे गंधते हैं तब उस किक का लॉंदा दो जाता है। बस, यद्दी द्दाल इस एथ्वी का भी समभकना चादिये। प्रारम्भ में असंख्य परमाएु थे, वे किसी न किसी साधन से एकत्र हुए हैं, और वह कृति, जो आज प्रत्यक्त देखते हैं, उसका कर्ता कोई न कोई अवश्य ही होना चाहिये। यद्द निर्विवाद है । फिजिकल साइन्स और वेद इन दोनों की इस विषय में बहुत्त बड़ी समता देखने में आती है । परमाएु झनादि हैं? ऐसा उनमें कद्दा है । वे उत्पत्ति और नाश से रहित हैं । सुये भी परमाणुओं से ही घना है । लोगों को यहद उपयुक्त कथन ठीक न जान पढ़ेगा। तथापि शाख्र शिक्षित लोगों को अवश्य वी स्त्रीकार करना पड़ेगा कि झलग छालग रहे हुए परमाणु मिल सकते हैं, और संयुक्त हुए परमाणु अलग लग होते हैं । नास्तिक लोग भी प्रथ्वी का अस्तित्व स्वीकार करते हैं । ऐसा कोई भी न मिलेगा जो यह मानता दो कि प्रथ्वी का अस्तित्व नहीं । जैसे जलतत्व के तीन रूपान्तर ( वफ़ पानी और भाफ ) दोते हैं वैसे दी सुये; चन्द्र, प्रथ्वी, तेज इत्यादि सबके थोड़े बहुत प्रमाण में रूपान्तर दोते हैं । सांख्यशाख्रकार ने कहा है कि यह प्रथ्वी प्रारम्भ में प्रकृति स्वरूप में थी । तद्नन्तर वायवी दशा में, दवा के स्व्ररूप में आाइई। इसके वाद वद्द गोलाकार स्वरूप हुई । पदार्थ विज्ञान शाख्र में भी ऐसा दी च्णुन किया गया है। इससे यह सिद्ध दो सकता है कि यह प्रथ्वी एक वार बनी है.।




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