जययोधेय | Jay Yodheya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.34 MB
कुल पष्ठ :
301
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्9 जय यौधेय खिन्न था । श्रज्जुकाने दौड़कर रामक्ने सिरको श्पनी गोदीमें रक््खा । वच्छ वच्छ कह दो-तीन बार गिड़गिड़ानेके बाद रामने आँखें खोलीं । श्रब भी वह बहुत घबड़ाया हुआ था और उसका सारा बदन पसीने-पसीने था यद्यपि यह जाड़ोंकी रात थी । श्रज्जुका श्रौर परमभट्टारक रामको लेकर अपने श्रीगर्भमें श्ाए । राम तो खेर थोड़ी देरमें प्रकृतिस्थ हो गया लेकिन तमाल-कुझके मद्दापिशाचकी अझाँख-देखी कथाको निपुणिका कंचुकी श्रौर वामन महीनों तक कहते रहे । सारे पाटलिपुत्रमें मदापिशाचके बारेमें सैकड़ों तरहकी कथायें फैलीं । पिशाच-शांतिके लिए ब्राह्मणोंने खूब जप-होम किए परम- भट्टारक श्रौर परमभट्वारिकाने लाखों दीनार ( सुद्दर ) दान-पुण्यमें ख़च किए । चन्द्रकी बचपनकी शरारतोंकी कथाश्ओंका श्न्त नहीं है। उसका दिमाग़ हमेशा नई-नईं बातोंको ढूंढ निकालनेमें लगा रहता था । उद्यानमें बहुतसे जन्तु रकखे हुए थे ।जनमें एक रक्तमुख बानर भी था चन्द्रकी नज़र एक दिन उस पर पड़ी । फिर मुझे ले वह वहाँ पहुँचने लगा । कभी केला ले जाता कभी कोई दूसरा फल कभी कुलूपा हमारे साथ रहती श्रौर कभी दूसरी चेठी । चन्द्र दो-एक ही दिनमें खिलाते-खिलाते जब रक्तमुखके पास बैठकर उसकी पीठ पर द्ाथ फेरने लगा तो कुल्लूपा बहुत घबड़ाई । लेकिन चन्द्रने कुछ समभका कर श्रौर कुछ ॒डरा-घमका कर उसे ठीक कर लिया । दो सप्ताद बीतते-बरीतते तो रक्तमुख श्र चन्द्रकी ऐऐद्ठी दोस्ती हो गई कि बह दोनों पैरों पर खड़ा हो चन्द्रके दाथकों पकड़ कर टहलने लगा | नौकरोंसे कह कर चन्द्रने उसकी रस्सी निकलवा दी श्र झ्रब चन्द्र और दमारा तीसरा साथी रक्तमुख हो गया । उसे लिए वह दर् जगद घूमता था श्र कुब्जों वामनों कंचुकियों श्रौर चेटियोंकी जान पर श्राफ़त थी | इशारा भर करना था कि रक्तमुख कुब्जेके कूब्रड़ पर सवार होनेके लिए तैयार था । श्रज्जुकाके पास गाढ़ी-गाड़ी भर शिकायत गई । चन्द्र कदता -- नहीं मेरी अज्जुका रक्तमुख बड़ा भलामानुस है जो चिढ़ाता है मुँह बनाता है या कंकड़ -प्रत्थर फैकता है उसी पर वह नाराज़ दोता है |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...