आचार्य सायण और माधव | Aacharya Sayarn Aur Madhav
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
133.19 MB
कुल पष्ठ :
237
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मम - का _ झाचार्य सायण श्र माधव
बर्थ सीमांसा का परिचायक यही अ्न्थ सब से प्राचीन माना जाता है । इसमें...
....... वेद मंत्रों की समुचित व्याख्या भी है, परन्दु इतने कम मंत्रों की, कि विपुल
....... वेदराशि का एक अत्यन्त स्वल्प झंश ही इसके द्वारा गताथ होता है। इस
प्रकार यास्क्र के निरुक्त के द्वारा वेदार्थ मीमांसा पद्धति का मार्ग प्रदर्शन मात्र...
...... होता है, परन्तु इतनी भी सहायता बड़े महत्व की है। ....... ........
र . झब तक वेद मन्त्रों के सहायक कतिपय व्याख्या ग्रन्थों का बणन
किया गया है । प्राचीन काल के पश्डितजन इन्हीं ग्रन्थों की सहायता से वेद
.. मस्त्रों के अथ को सम लेते थे | प्राचीन जीवित परम्परा से वे पर्यात्त सात्रा
.. में परिचित थे, झ्रत:, परम्परा के आधार पर वेद के पडड़ों की .झ्रमूल्य सहा-
यता से वे अनांयास ही वेदाथ को समभ लेते रहे होंगे, ऐसा अनुमान करना.
ज्यनुपयुक्त नहीं प्रतीत होता । परन्ठु समय ने पलटा खाया; बुद्ध धर्म के प्रचार
.. के साथ साथ वैदिक धर्म तथा वैदिक निष्ठा का हास होने लगा । राजाश्रय
... प्राप्त होजाने से बुद्ध धर्म श्रब एक पान्तीय घर्म न रहा; बल्कि समस्त ..
:... .. भारत में तथा उसके बाहर भी. इसके मानने वालों की संख्या बढ़ने लगी
........ और देखते ही देखते इसने बैदिक धर्म को दबाकर अपना प्रमुत्व सम्य संसार.
में जमाया । वैदिक घर्म समथ-समय पर अपना सिर उठाया करता था; परन्तु
..........श्रनुकूल वातावरण न मिलने के कारण इसके प्रभाव में स्थायिता का श्रभाव
....... बहुत दिनों. तक बना रहा । अन्ततोगत्वा. विक्रम की चहुथ. शताब्दी में.
.......... उत्तर भारत में गुप्त नरेशों का शांसन स्थिर हुआ । इन परम भागवत मही
....... पतियों ने वैदिक धर्म के पुनरुद्वार तथा. पुनरुत्थान में हाथ बटाया । इनके
समय में वैदिक घर्स ने श्रपना गोरवपूणण मस्तक ऊपर उठाया तथा बुद्ध घर्मे
.' की अवनति के साथ साथ इस धर्म की उन्नति विशेष रूप से होने लगी ।
“इसी संस्कृत साहित्य के सुबण युग में वेदों के भाष्य बनाने की प्रवृत्ति उत्पन्न
हुई । वैदिकभाष्यका वाइ्सय बड़ा विशाल है तथा प्राचीनकाल का है । बहुत
पं के केवल नाम से ही . हम परिचित हैं | उपलब्ध भाष्यों की रचना गुप्त
कालके अनन्तर प्रतीत होती है, परन्तु स्फूर्ति गुप्तयुग से ही उन्हें मिली है |
ऋग्वेद के भाष्यकारों. में स्कन्दस्वामी; माघवभट्ट, तथा वेंकटमसाधव शादि
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