असामान्य मनोविज्ञान | Aasamanay Manovigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.75 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगदानन्द पाण्डेय - Jagdanand Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४ ) लेकिन उसका वही व्यवहार दूसरी संस्कृति और समाज के प्रतिकूल भी हो सकता है | इसलिए एक ही व्यवहार एक समाज श्र सस्कृति में सामान्य श्र दूसरे समाज श्र संस्कृति में असामान्य घोषित किया जा सकता है । झतरव असामान्यता के ये सापद्ण्ड भी मान्य नहीं हैं । देहिक आ्राधार ( ?ए7810100108) 98818 ) पर शसामान्यता को जिन देहिकविज्ञान-वेत्ताओं ( एफ झ0100ं88 ) ने निर्धारित किया है उनके विचार से भी हम सहमत नहीं हैं । इसके अनुसार जो सामान्य लम्बाई से श्रधिक लम्बा या नाटा है वह असामान्य है। लेकिन इस सम्बन्ध में यह स्मरणीय है कि शरीर का लम्बा या छोटा होना कई अंगो पर निभर करता है श्रौर उसकी प्रतिक्रियाएं उसकी शारीरिक रचना पर ही निभेर नहीं करतीं बद्कि अन्य लोगो की प्रतिक्रियाश्नों पर भी निभेर करती हैं। प्राय ऐसा भी देखने में आता है कि सामान्य कद का आदमी श्रसामान्य व्यवहार करता है और बहुत लम्बा या नाटा व्यक्ति पूणतः सामान्य व्यवहार करता है । रत किसी स्थल-विशेष पर यह दृष्टिकोण भले ही चरिता्थ हो लेकिन सभी स्थलों के लिए यह कदापि मान्य नहीं है । वेघानिक दृष्टिकोण के झनुसार जो मनुष्य ऐसा व्यवहार करता है जो उसके या उसके समाज के लिए घातक है श्रौर जिसके लिए उसका उत्तर- दायित्व नहीं है तो वह मनुष्य श्रसामान्य है । लेकिन यह वेधानिक दृष्टिकोण संकीण होने के कारण व्यापक नहीं है अतः श्मान्य है| प्राय बहुत-से ऐसे व्यवहार व्यक्तियों में देखे जाते हैं जो वेधानिक दृष्टिकोण से श्सामान्य नहीं के जा सकते तथापि वे उनकी असामान्यता के ही चोतक होते हैं । दम सांख्यिक ( 31वा181061] ) दृष्टिकोण की भी उपेक्षा यहाँ नहीं कर सकते | इसके श्रनुसार जो व्यक्ति श्पने समूह के ्न्य व्यक्तियों के किसी शील-गुण के मध्यमान ( 0667 ) से कम या अधिक है वह असामान्य है और जो मध्यमान के समान है वह सामान्य है । इसके अनुसार सभी शील-गुणों की माप संख्यास्मक हो सकती है। लेकिन उअसामान्यता का यह दृष्टिकोण भी सर्वाह्सुन्द्र न होने के कारण मान्य नहीं है क्योकि एक ही व्यक्ति एक शील-युण मे अपने समूह के मध्यमान के बराबर श्र दूसरे में उससे कम या अधिक हो सकता है जेसा कि अनेक अन्वेपणों से स्पष्ट है । इसके झ्रतिरिक्त मनुष्य के सभी महत्त्वपूणं या आवृक्यक गुणों को सामान्य-विभाजन वक्क ( पंप ताडंए्पिपां00 (पाएए6७ ) द्वारा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...