भगवान् गौतम बुद्ध | Bhagwan Gautam Budha

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Bhagwan Gautam Budha by स्व. पं. ईश्वरी प्रसाद शर्मा - Sw. Pt. Ishwariprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. १० भगवान्‌ गोतम बुद्ध कि लड़कपन से दी उनके सन में कितनी दया भरी हुई थी । त इसी तरह एक दिन बषा-ऋतु के झारभ में जब कपिल वास्तु के सब लोग बढ़ झानद के साथ पइलेपहल खर्तों में इल चलाने के लिये श्राए, तब अपने पिता के साथ-साथ बालक राजकुमार सिद्धाथ भी वहाँ आए । इस अवसर पर कपिलवास्तु में बड़ा उत्सब होता था, जिससे राजा-ओजा' सभी लोग भाग लत थे । राजकुमार ने देखा कि दल चलाने स बहुत-से कीढ़-मकाड़ों के रहने का स्थान नष्ट हो गया ओर व इधर-उधर भागे फिरते हैं । झासमान में कितने ही पची उन कीट-पतंगों का खाने के लाभ से मंडरा रहे थे । यह द्खकर कुमार को बड़ा दुःख हुआ कि इस प्रकार एक प्राणी दूसर का प्राण लेने के लिये उतारू हो रहा हे । सब 'ानद-उत्सव की बातें हवा में उड़ गई । उनको केवल यद्दी सोच सताने लगा कि क्यों इस तरइ एक जीव दूसरे का नाश करता हैं । जब उनसे नहीं रहा गया, तब उन्दोंन अपन पिता स कहकर उत्सव बंद करवा दिया | सिद्धाथ के लड़कपन की इन दोनों घटनाओं से मालम हाता दे कि वे घोर-श्रार लड़कों की तरह केवल खेल-कूद, मोज-बहार शार झानदृ-उत्सव के दी प्रमी नहीं थे । वे न शम्य अभि हरि ्द




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