महाकवि भास | Mahakavi Bhas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रास्ताविक महाकवि भास ने जनसाधारण के मनोभावों, हृदय की वृत्तियों एवं विभिन्न परिस्थितियों में उत्पन्न होने वाले मानसिक विकारों का चित्रण बड़ी कुशलता से सम्पन्न किया है । राग-द्वेष, हर्ष-विषाद, प्रेम-करुणा, उत्साह- :अवसाद प्रभृति जितने भाव सानव हृदय की सम्पसति हैं, उनका सरस और मधघुमय वातावरण में निरूपण किया गया है । भारतीय संस्कृति के अमर संदेश- वाहक नाटककार भास ने जीवन की उन शाश्वतिक समस्याओं--धर्म-काम, “धर्म अर्थ, प्रणय-कत्तेव्य, स्वाथ॑-परमार्थ आदि का उद्घाटन किया है; जिनका मानव जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता श!है कि मानव जीवन के विवेचक और विश्लेषक नाटककार भा भारतीय जीवन और संस्कृति के प्रमुख गायक हैं । निश्चयत: भास की नाट्य-कला में विविधता गौर वहुमुखता विशेष रूप से समवेत हैं । प्रकृति के नाना रूपों के सजागरूक द्रष्टा भास की नाट्य-कला एक ऐसा दपंण है, जिसमें प्रकृति गौर जीवन दोनों हो प्रतिविम्वित हैं । यह दपंण सामान्य दपेंग नहीं है, अपितु वर्णे- मय रहिमयों को संसृत और प्रकाशित करने वाला है । भास के नाटक जीवन की सांकेतिक अनुकति न होकर जीवन की सजीव प्रतिलिपि होने के साथ वास्तविक प्रतिच्छवि भी हैं । यही नहीं, वे यथायेतः आस्तरिक जीवन का ऐसा 'ऐलवम' हैं, जिसमें कला और जीवन के विविध चित्र संकलित हैं । जीवन की चित्रेमयता नाना प्रकार के वेष-विन्यासों एवं भाव-भंगिमाओं द्वारा अभिव्यक्त हुई है । यही- कारण है कि भास की कृतियों में भावनाओं, अतीतकालीन गौरव गाथाओं, इतिहास-पुराणों , सफलता-विफलताओं: उत्यान-पतनों, शुचिता-अशुचिताओं भादि की जीवन्त अवतारणा प्राप्य है। , निस्म॑ंदेह जीवन के समान. ही भास के नाटकों का क्षेत्र एवं परिधि अत्यन्त विस्तृत भौर विशाल है। मानवता, मानव सुल्यों, मनुष्य के चिरन्तनः भावों, अनुभुतियों एवं समस्याओं पर गम्भीरतापूर्वक चिन्तन किया गया है । सभ्यता,




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