भारतीय व्यवहार कोश | Bhartiya Vyohar Kosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
150.72 MB
कुल पष्ठ :
293
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध्वनिविचार
सुंचोधित आंतरराश्रय
देवनागरी 'ध्वनिलेस्खन
६३ . घर. ण
“के,
पद स
अजुक्रम चर्णन
सघोष, दन्त्यौछ्य, अधस्वर ।
अघोष,-दंतमूलीय, संघर्षी ।
मधघोष, कठिन ताल्व्य, संघर्षी ।
उघोष, सूर्घन्य, संघर्षी |.
सघोष, कण्ठ्य, संघर्ष
सघोष, मूर्घन्य, पाध्चिक ।
सघोष, मूरघन्य, संघर्षी |
संयुक्ताक्षर (क्+ घर)
संयुक्ताक्षर [जून ज] .
अनुस्वार । वर्ण के सिर पर बिंदी ।
'ध्वनिविचार
उदाहरण
हिन्दी-वन दर फ़ा छा।डॉन-फाणण, 006.
हिन्दी-सवेरा; फ़च्िडा-डोप, पिंड,
हिन्दी-दान्ति; एफ छ्ाडाच-डॉ16..
संस्कत-पुरुष; 10७ 8050-5000%. फेवर संस्कृत में इंस का ठीक प्रकारसे वर्णित
उच्चारण होता है। अन्य भाषाओं में प्रायः [श ] या [स ] बनता है।
हिन्दी-दम; फा०8150-971680ं कक,
ओड़िया-डोढा > मँख €फ्€; मराठी-डोढा >ौख «छू; तमिछ, ...
मलयाठमू:मकठ < पुत्री व&०६७7
तमिदठ, मलयाठम-पठमू > फल कफ; पा ांडाण-पप्ण [छुन् | यह बण
केवंढ तमिछ और मल्याठम् में आता है। [ष] को संघोष बनाने से उस का
उच्चारण इस के समीप आएगा। गीतों में उर्दू शब्द नंज़र का उच्चारण इसी तरह
होता है [ नज़छ ] 1 ७
संस्कत-क्षमी [क्घमा ]; हिन्दी-क्षमा [ बदमा ]। इस वर्ण का उन्च्वारण [ क्ख
[क्ख्य ] [ख .] इत्यादि कई प्रकार से होता है।
संस्कत-श्ाश्ञा। इस वर्ण का उच्चारण मिन्न भिन्न प्रकारसे होता है।
हिन्दी-भाज्ञा [ आग्या ]; बाड्ला-आज्ञा [ भाग्गें ); मराठी-आशा [. आदून्या.3।
हिन्दी-मंद [ मन्दू ] |
अधघोष, कण्ठ्य, संघर्षी । विसर्ग । स्वर के. संस्कृत-क्रमद, मना, पाया; छा8॥5+-०8त
पश्चात् खडी दो बिन्दियाँ छगती हैं ।
प्ंद्रबिन्दु । नासिकोच्चारण निरद्दाक चिह्न । ..
हलन्त-स्वर के लोप निदर्शकं चिह्न ।
_ हिन्दी आँख ।
जे
हिन्दी-कान | कान् |; जगत् ।
उच्चारण की कुछ विशेषताएँ:
मंनुष्यने अपनें मनोभाव को प्रदर्शित करने के लिए. अभिनय के साथ-साथ अपने
मुखसे निंकलनेवाले ध्वनिसमुच्चय का भी उपयोग करना झुरू किया और इन ध्वनियों को
अड्लित करने के लिए कुछ संकेत-चिह्न निर्माण किये जिनसे लिपि तैयार हुई।
परम्परा के अनुसार मानव अपने भावों को अनुसरित छिंपि में लिखता गया, किन्तु
बोलने में स्थलकालानुसार पशि्विर्तन हुए । इन परिवतेनों में जहाँ साधर्म्य' रहा वहीँ
उन 'लोगोंने फिर अपने ध्वनिसंकेत प्रथक॑ बनाये, लिपि. प्थक बनायी और प्रथक-
प्रथक मानव-समूह की प्रथक-प्रथक भाषाएं बन गयीं । इनं भाषाओं बोलियों
का उन्म हुआ जो अपनी-अपनी भाषा के अंतर्गत ध्वनियों के द्वारा भावप्रद्शन का
विशेष ढंग रखती हैं । दरएक बोली या भाषा की अपनी-अपनी विशेषता रहती है ।
यहाँ भारत की पौचच सौ से अधिक बोलियों के उंच्चारण की विशेषताओं का परिचय करा
देना तो असंभव है। फिर भीं, अपनी 'प्रमुख सोलह भाषाओं के उच्चारण की कतिपय -
विशेषताओं का अति स्थूल निर्देशन हम करेंगे। उच्चारण में तो हर बारह गॉवपर
अंतर पड़ता है। इतना ही नहीं तो एक ही दाब्द भिन्न-भिन्न व्यक्तियोंद्वारा अलग-
अलग ढंग से उच्चारित होता 'है । ऐसी अवस्था में भाषाओं के उच्चारण में होनेवाले
सूबष्मातिसूक्ष्म परिवर्तन को अड्कितें करना यह न पाठकों के लिए. सुविधाजनक होगा
न हमारे लिए | अतः हरएक भाषा की कुछ सर्वेसाधारण विशेषताएं: आगे दे रहे हैं।
हिन्दी... पा
एक से अधिक अक्षरों के शब्द के अंत में यदि अ स्वर आता है, 'तो उस
का उच्चारण नहीं होता। अन्त्य व्यल्नवण हलन्त हो जाता है। जेसे नाक का
उच्चारण [ नांक् ] होता है और कान का [कान्]। इस नियम के लिए कतिपय
अपवाद मी हैं । प्रायः संयुक्तवर्णान्त दाब्दों में अन्त्य अर का छोप नहीं होता, जैसे-गद्य ।
उ या अकारान्त व्य्न के पश्चात् “हु” के आने से प्रायः उस .अ* का
[ें ] बनता है और हद इलन्त हो जाता है । जैसे मद [ में ], दीदद [रद्द ] ।
कईबार ऐ. का उच्चारण मी [ में ] होता है जैसे मैं का [में , और बैल का
[बेल ]। कभी-कभी ऐ की में बनकर अगले ध्वनि के पूव हलंकी सी *यर की
ध्वनि सुनाई देती है। जैसे पैसा [ पेंप्सा ] ।
श का उच्चारण हिन्दी में ग्य होता है। जैसे आशा [ भांग्या ]; ज्ञान [ ग्यान् ] | ल्
आज की खड़ी बोली में ५ विशेष ध्वनियाँ हैं, जो अरबी और फ़ारसी से
ख़ायी हैं और अस्बी फारसी दाष्दों में ही पायी जाती हैं । के, ख, श, जूं, फ्रं।
हिन्दी या उदूं में औ का उच्चारण भी और के दरसियान करना चाहिए,
जैसे और [ आर ]। दब्द के स्तर पर इस के आो . के . समीप होने: के ,काशग
दाब्दावली में हम ने उच्चारण में औ” ही रक््खा है। वाक्यों में यंधावश्यक [आऑ!]
दिंया गया है। )
हिन्दी की आम बोली में जहीँ प्रारंभ में स के साथ 'संयुक्ताक्षर “आता है,
वहां उच्घ्वारण में उस संयुक्ताक्षर के पूव इ या अःकी' ध्वनि आती हैं।' जैसे 'स्री' को
[इखी ] और स्पष्ट का [ अस्पष्ट ]।
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