हिंदी विश्व कोश भाग - ४ | Hindi Vishva Kosh Bhag - 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ कपात श्धर भआासमागी-देखनेमें तरल धसरवय होता है। सका 'च्च श्वेत रहता है । ' कफूदा-स्थाहा, चौना भीर मामूली तोन थे णौमें विमहा है। स्थाईकी पूछ काली या लाल ोती है। गलेमें क्यो चपटे भौर भरांखमें गोल दाग रदते हैं । सीनाके गलेमें कितनी हो लाल छींटें पड़ जातो हैं। भ्रांख रफ़ौन रहती है। फिर उसमें दो गोल दाग भी होते हैं। स्थाद्ा भर चोना दोनों देखनेमें बहुत अच्छे लगते हैं। सासूलो सफे देके अ्रक्क, गलदेश सर पुच्छीं कलदा रदता है । सूरा-इस कपोतक गलदेश, पप्ट एव' पुच्छमें सफेद शोर कालो छौंठ रहती है। फिर किसोक केवल घट ग्रौर 'चन्ुमें हो कलझइः देख पड़ता है। सवल्ा-देखनेमें गाढ़ धसरवण होता है। पचपर दो-दो रेखा रहती हैं। यद कपोत वाजो, चक्कर घौर उड़ानके इिसावसे भला-ुरा समभहा जाता है । अंगरेजू खगसत्लवेत्तावोंके मतसे कपोत और डलुकका साधारण नाम कोलब्बिड़ी (001घ000ठे०6) है। यई प्रधानत: थस्य खा जोवन धारण करते ऐैं। फिर इन्हें आूमिपर घूस घूम चुगना अच्छा लगता है। इनमें भ्धिकांशका वयणं नोल रदता है। चण भौर स््रभावके अनुसार कपोतको तोन रो ठडरायो गयो हैं। १म लफोलोमिनी ( 1:80100186- 'ण08 ) श्रघोतू कलगोदार, ( 07९४:89-छ्ु०008 9 रेय पालस्विनो (?8!ए0७००७) अधात्‌ वन्य (ह7000- फरंट०००8 | 'प्ौर रय कोलस्विनो ( 001एछाज086 ) “र्थातू पाव त्य ( हि०ण:-छांडु०००४ 9 कपोत। प्रथम श्रेणोको एकमात्र जाति घ्ाजकल चघट्टे- ' लियामें देख पढ़ती है। इस कपोतक सस्तकापर सयरको चड़ाके समान दिंगुण शिखा रइतों है। 'अंगरिलो खगतप्त्वमं इसको लाफोलोमस भ्रारठाटिकस ( 1.8फुफिएा86ाापड इ्णहएपिएाड ) ध्र्धात्‌ दक्षिय-मद्दा- सागरोय दिंगुण थशिखायुक्ता कपोत कइते हैं। रय “्ेयणोमें एक प्रकार बेंलनी चमक लिये पतले श्रास्थानी रहा कवूतर 'छोता है। यह सध्य-भारतके पूर्व से ससुद्रोपकूल पयन्त सकल स्थानोंमें मिलता है। भ्रासाम, आराकान और रामरो दोपमें भो इसकी संध्या यथेषट डैं। दिमालयके मध्यप्रदेशमें इसो जातिका एकप्रकार शिखायुक्त कप्रोत होता है। इसका रुप अति सभो- इर लगता है। दारजिलिडके निकट इस जातिके लो एक प्रकार कप्रोत रदते, उन्हें नेपालों 'नासपुम्फो” कइते हैं। फिर नोलगिरि पवेतसें इसो जातिके डोनेवास एकप्रकार कपोत राजकपोत कद्दात हैं । यद देघ्य में पुच्छके पालक समेत प्राय: २४५ इच्छ पढ़ता है । दिन्दुस्ानके जदलो गोली भर गिरइवाज़ इस शेणोसें सा सकते हैं। श्य श्रे्ोके पावत्य कपोत कुमाय' प्रदेशके उत्तर, उत्तर-एशिया भौर, ज्ञापानसे समस्त युरोपखरड परयेग्त देख पढ़ते हैं। इनका वे अधिक नोल नददीं रहता, नोलका आधिक्य लिये धसर लगता है। काश्मोर घन्चलमें दिमालय पर उकप्रकार खेतचस्र, कपोत छोते हैं। यह देखनेंमें धतिसुन्दर समभक पढ़ते हैं । इन सकल एवं श्रव्याव्य लाति वा कपोत मभेदके झ्ंगरेजो खगतत्में लिखे लक्षणालन्षण पतिंसूध्म रूपसे बता देना एकप्रकार भ्रसस्भतर है । कारण उक्त जातीय पचो न देख केवल कविको वर्णनाके सदारे कोई भक्ति कल्पना कर लिखना केसे युक्तिसिद छो सकता है । इसोसे झंगरेजो खगतत्त्वजे भ्रनु हार समस्त नातिके लचणालचथ नहों लिखे । कपोत अति झुखो प्राणो है । भ्रति सामान्य सुख भर विपद्से इसको सम्रूह 'घ्ति डो ज्ञातो है। हिन्दुस्थानमें कपोतकों लकष्मोका वरपुत्र सानवे हैं। बतेकको विखास रघता--इचे पालनेसे स्टदस्थ शा महल बढ़ता, दरिद्रत्व घटता भर ल्मोका दर्शब सिलता हैं। फिर इसके परका चाघु मनुप्यक्षे शरोरमें लगंनेसे सबरोग दूर 'ोता इ। . इसोसे कितने हो लोग कपोत पालते ईं। पबन्य कपोतकों रटहमें आ चसने पर .कोई नदीं उड़ाता। कलकत्तेमें बद्ालों घौर छिन्दुस्ानो महानन अपने अपने व्यवसायक स्थानमें सयल्न कपोत 'प्रतिपालन करते हैं । मनुष्यक भसाधारण अध्यवंदायसे रानकपोतका एक भअपूव शुण आविष्कुत इुवा हे। यक्र सिखाने




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