हिन्दी रूप रचना | Hindi Roop Rachana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
87.36 MB
कुल पष्ठ :
285
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ०उर्वशी सूरती - Dr.Urvshee Surati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ट ः . हिन्दी रुप-रव्बवा परिवर्तन होते रहत हैं । इन परिवर्तनों के कारण भाषा के कई रूप बनते हैं । परिवतत की यह प्रक्रिया सहंज और भीमी होती है। इस परिवर्तन के मूल में मनुष्य जीवन की परिस्थितियाँ और आवश्यकतायें होती हैं । साषा ध्वनियों से बनती है । भाषा के प्रयोग के प्रमुख आधार कंठ और जीभ हैं । किन्तु भाषा के प्रयोग में मानव के शरीर के सभी अंगों का योगदान रहता है। शरीर के भीतर और बाहर की वायु का भी इसमें सहत्त्वपूण स्थान रहता है । किन्तु सुननेवाले की दुष्टि से बोलनेवाले के कंठ और जीस का प्रमुखतस स्थान है । परन्तु भाषा के निर्माण के प्रमुख आधार वनियाँ हैं और ध्वनियों के निर्माण में बायु का अत्यधिक महत्त्व है । यहाँ यह उन्लेखनीय दै कि बिना भावों एवं विचारों के अभिव्यक्ति के माध्यमरूप भाषा का निर्माण हो ही नहीं सकता । कहा भी. गया है यन्मनसा ध्यायति तद़ाचा वदति अर्थात् भाव या विचार जब उठते हैं तब वे वाणी द्वारा प्रकट होते हैं । अतः भाषा के निर्माण के संबंध में इस प्रकार कहा जा सकता दै भाषा एक क्रिया है जिसके ढारा मनुष्य अपने भावों तथा विचारों को वास्यंत्रों से उत्पन्न वर्णात्मक या भक्ष रात्मक ध्वनियों की सहायता से प्रकट करता है । संक्षेप में भाषा भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण साधन है । साथ ही यह भी ्यान रखना है कि जब भावों एवं विचारों की बहुलता रहती है तब साषा भी उन सबको प्रकट करने में पूर्णतः समर्थ नहीं होती यहीं कारण है कि भाषा का प्रयोग करते समय विभिन्न शारीरिक चेष्टाओं एवं मुद्ाओं की सहायता ली जाती है। किन्तु ये सब गौण हैं भाषा प्रमुख है । भाषा के बिना मतुष्य का सामाजिक-जीवन संभव नहीं है मानव-सानव में भाषा का व्यवहार न हो तो संबंध नहीं हो सकता और परस्पर भावों एवं विचारों का विनिमय तथा संप्रेषण भी नहीं हो सकता । अत मानव . संस्कृति तथा सम्यता के विकास के साथ-साथ भाषा का भी विकास होता रहता है । इससे स्पष्ट हो जाता है कि मानव के जीवन में और उसके विकास में भाषा का कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है । साधा का रूप पहले संकेत किया गया है कि भाषा वर्णात्मक ध्वनियों से बनती है । किन्तु यह कहना उचित नहीं है कि ध्वनि ही भाषा है । भाषा एक संपूर्ण भाव या विचार को प्रकट करती है । वनि मात्र नाद-संकेत है । मूल ध्वनियाँ नाना प्रकार की होती हैं । ध्वनियों से वर्ण बनते हैं । वर्णों के योग से शब्द बनते हैं । शब्दों के समूह द्वारा वाक्य बनते हैं । वावय स ही भाव या विचार संपूर्णत अभिव्यक्त होते हैं । अतः भाषा का मूलाधार शब्द-समूह या वाक्य होता है । प्रत्यक्ष रूप में हमारे भावों या विचारों का आदान- प्रदान बाक्यों द्वारा ही होता है । कभी-कभी व्यवहार में हम देखते हैं कि एक-दो शब्दों. . के प्रयोग से भी संपूर्ण अभिव्यक्ति हो जाती है । तब हम उन शब्दों को भी वाक्य ही मानेंगे । जैसे किसी ने दरवाज़ा खटखटाया और हमने कहा आइये । यह एक हो शब्द है फिर भी इससे यह अर्थ या पूर्ण भाव निकलता है दरवाज़ खुला है अन्दर आइये
User Reviews
No Reviews | Add Yours...