हिंदी - रचना और अपठित | Hindi - Rachana Aur Apathit

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Hindi - Rachana Aur Apathit by जयनाथ नलिन - Jaynath Nalin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) ध्वानि किसी कविता या गद्य कौ स्वना को भली प्रकार सशूले क लिए यह श्रत्यन्त श्रावश्यक है किं दि उसके भीतर के विशेष श्रोर श्प्रत्यक्त 'ध्वनि' हो तो हम उस तक पहुँच जाँय-उसे समभ लें। किसी रचना का “व्यंजन” के द्वारा जो धर्थं निकलता है, उसे या किमी रचना के व्यंग्याथ को; श्वनि' कहते है । जिस रचना में ध्वनि” विशेष होगी, वह श्रेष्ठ रचना कहलाएगी 1 प्ति गद्य रचनाओं सें भी हो सकनी है; पर काव्य में यह बहुत पाई जाती है। यह काव्य को शोभा है । हमारे साहित्य के ्रचायौ ने ध्वनि-कांव्य को सर्वश्रेष्ठ काव्य माना है । वनि पिस को कहते हैं, एक-दो उदाहरणों से, यह श्च्छी प्रकार समक में श्रा जायगा । रावण ने अंग से पूछा-'अंगद, तुम्हारे पिता बाली फुशल तो हूं. 7”? श्रंगद ने. उत्तर दिया--“तुम स्वय स्वम मे जाकर उनकी कुशल पृच्छ लेना 1 अंगद के उत्तर में यह “ध्वनि” है कि तुम अब शीघ्र हो सारे काने वाले हो 1 गर्भन के श्रसैक दलन, परसु मोर अति धोर। मात पिता जनि सोच वस, कग मद्दीप किसोर । परशराम जी दमण से कहते दै कि मेरे परसे कौ घोर आवाज़ सुनकर गर्भ के बच्चे भी मर जाते हैं । पे राजकुमार अपने माता-पिता को शोक में मत डाल । इस से यहीं ध्वनि




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