दर्शनसंग्रह | Darshan Sangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Darshan Sangrah by डॉ० दीवानचंद - Dr. Deevanachand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ० दीवानचंद - Dr. Deevanachand

Add Infomation AboutDr. Deevanachand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उपनिषद्‌ १. सामान्य विवरण भारत के साहित्य में उपनिपदो का विशेष स्थान है। यह वेद के ज्ञान-भाग का व्याख्यान हैं। कुछ लोग तो इनको इतना महत्त्व देते हूं कि इन्हें वद का अश ही समझते हे । 'उपनिपद्‌' का अथें निकट वेठना है। जव दो मनुष्य एक दूसरे के निकट वेठते है तो वह ऐसी वातें भी कर सकते हैँ; जिन्हें वह दूसरों से गुप्त रखना चाहते हे । इसलिए 'उपनिपद्‌' झाव्द रहस्य के अर्थ में भी लिया जाता है। एक पग भागे वर्ड तो उपनिपद्‌ वह रहस्य है, जो तात्तविक विवेचन का विपय है । उपनिपदु किसी एक पुस्तक का नाम नहीं, यह प्राचीन साहित्य की एक शाखा है। इस शाखा के अन्तगंत अनेक पुस्तकें आती हूं, जो विविघ समयो पर लिखी गयी । इनमें कुछ गद्य में हैं; कुछ में गद्य और पद्य मिले है, और कुछ पद्य में है । इसी क्रम में इन्हें प्राचीन, मध्यकालीन गौर नवीन समझा जाता है। काल-क्रम निद्चित करने के लिए भाषा, समाघान-शली और विपय को भी ध्यान में रखा जाता है। जो पुस्तकें उपनिपदों के नाम से प्रसिद्ध हें, उनकी सख्या १०० से ऊपर है, परन्तु प्रामाणिक उपनिपदो की सख्या थोडी ही है । इस श्रेणी में वे उपनिपदें आती है, जो साम्प्रदायिकता से विमुक्त हे और जिन पर छकराचाये ने भाप्य किया है । इनके नाम ये है-- ईद, केन, कठ, प्रइन, मुण्डक, माडूक्य, ते त्तिरीय, एतरेय, छान्दोग्य, वृहदारण्यक, दवेताइवत्तर । कुछ लोग कौपीतकी को भी इनमें सम्मिलित करते है। ईद उपनिपद्‌ जो अपने प्रथम पद के कारण इस नाम से प्रसिद्ध है, तनिक भेद के साथ यजुर्वेद का अन्तिम अध्याय ही है । इसमें केवल १८ मन्त्र हैं, परन्तु उपनिपदो में इसका स्यान सर्वोच्च है । अन्य उपनिपदो में वृह्दारण्यक प्रमुख है। यह गद्य में हे । पाँचवें अध्याय का अन्तिम (१५र्वा) ब्राह्मण ईद उपनिपद्‌ के अन्तिम चार मन्तों का उद्धरण ही है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now