वेदांत परिभाषा पर न्याय प्रभाव की समीक्षात्मक परीक्षा | A Critical Examination Of Nyaya Influences Upon Vedanta Paribhasha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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0 खण्छन कर ईश्तर की पुधक सत्ता का और आत्मक्तत्वविवेक मैं आत्मा की पृथक सत्ता का अकादय युक्तियों के द्वारा निरूपण किया । न्यायसुत्र के पांचवे अध्याप पर इन्होंने एक स्वतन्त्र टीका भी लिखी जिसका नाम न्यायपरिशिष्ट है । हस प्रकार इन्होंने प्रकरणग्न्थों को जन्म दिया और नव्य-न्याय की आधार भभि तैयार की | नतमू शताब्दी के काश्मीरी विद्वान भासर्वज्ञ का न्यायसार न्यायन्सत्र पर निर्मर एक प्रकरण-ग्न्थ है । इस पर इनकी अपनी हीं न्यायमुषण नाम की अत्यन्त चिशालकाय एवं पाण्डित्यपुर्ण टीका है | - यारहतीं सदी में जयन्तमद्ट प्रणीत न्यायमंजरी तात््पर्यपरिशुद्धि पर वर्धधान उपाध्याय हू ।फ्वीं सदी रचित न्याय- निबन्धप्रकाश और शैंकर मित्र हैं।5वीं सदीईू की त्रिसबीनिवबन्ध प्रस्दि व्यख्याएँ हैं | न्याय-दर्गन का नवीन युग बारहवीं सदी के आस-पास मिधिला-निवासी गंगेश उपाध्याय के युगान्तकोरी ग्रन्थ क्तत्वचिन्तामणि से प्रारम्भ होता है | इन्होंनि न्याय-सुत्र मैं ते प्रत्यक्षा नुमानोपमानशब्दा प्रमाण केतल एक मात्र सत्र लेकर प्रत्येक प्रमाण के अर भिन्न-भिन्न खण्ड मैं गहन चिंतन किया है । इस चिंतन का मुख्य विषय तो प्रमाणों की चिशद व्याख्या करना था किन्तु प्रसंगवश न्याय- दर्शन के तारे विषयों का च्वियन इसके अन्दर किया गया है । ऐत्तिहासिकोॉं का कहना है कि इतना विशाल साहित्य किसी भी एक ग्रन्थ पर उपलब्ध नहीं होता जितना एक तत््त-चिन्तामणि पर । गंगेश की लेखन-शैली ने ज्योतिष शास्त्र को छोड़कर प्राय अन्य सभी शास्त्रों को प्रभावित किया । विशेष रूप से यह चिचार तथा भाषा में यधार्थता लाने में सहायक हुआ । यह नवीन शैली नव्यन्याय के नाम ते प्रसिद्ध हुई | क्त्वचिन्तामणि नत्यन्याय का आदि ग्रन्थ माना गया । नत्य- न्याय के पारिभाधिक शब्दों के माध्यम से गन्थ प्रणपन करना अन्य दा शनिक समाज में मी पाण्डित्यपुर्ण माना जाने लगा 1 परवर्ती काल मैं अऔैतसिद्धि लघुचात्ट्रका




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