वेदांत परिभाषा पर न्याय प्रभाव की समीक्षात्मक परीक्षा | A Critical Examination Of Nyaya Influences Upon Vedanta Paribhasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36.1 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)0 खण्छन कर ईश्तर की पुधक सत्ता का और आत्मक्तत्वविवेक मैं आत्मा की पृथक सत्ता का अकादय युक्तियों के द्वारा निरूपण किया । न्यायसुत्र के पांचवे अध्याप पर इन्होंने एक स्वतन्त्र टीका भी लिखी जिसका नाम न्यायपरिशिष्ट है । हस प्रकार इन्होंने प्रकरणग्न्थों को जन्म दिया और नव्य-न्याय की आधार भभि तैयार की | नतमू शताब्दी के काश्मीरी विद्वान भासर्वज्ञ का न्यायसार न्यायन्सत्र पर निर्मर एक प्रकरण-ग्न्थ है । इस पर इनकी अपनी हीं न्यायमुषण नाम की अत्यन्त चिशालकाय एवं पाण्डित्यपुर्ण टीका है | - यारहतीं सदी में जयन्तमद्ट प्रणीत न्यायमंजरी तात््पर्यपरिशुद्धि पर वर्धधान उपाध्याय हू ।फ्वीं सदी रचित न्याय- निबन्धप्रकाश और शैंकर मित्र हैं।5वीं सदीईू की त्रिसबीनिवबन्ध प्रस्दि व्यख्याएँ हैं | न्याय-दर्गन का नवीन युग बारहवीं सदी के आस-पास मिधिला-निवासी गंगेश उपाध्याय के युगान्तकोरी ग्रन्थ क्तत्वचिन्तामणि से प्रारम्भ होता है | इन्होंनि न्याय-सुत्र मैं ते प्रत्यक्षा नुमानोपमानशब्दा प्रमाण केतल एक मात्र सत्र लेकर प्रत्येक प्रमाण के अर भिन्न-भिन्न खण्ड मैं गहन चिंतन किया है । इस चिंतन का मुख्य विषय तो प्रमाणों की चिशद व्याख्या करना था किन्तु प्रसंगवश न्याय- दर्शन के तारे विषयों का च्वियन इसके अन्दर किया गया है । ऐत्तिहासिकोॉं का कहना है कि इतना विशाल साहित्य किसी भी एक ग्रन्थ पर उपलब्ध नहीं होता जितना एक तत््त-चिन्तामणि पर । गंगेश की लेखन-शैली ने ज्योतिष शास्त्र को छोड़कर प्राय अन्य सभी शास्त्रों को प्रभावित किया । विशेष रूप से यह चिचार तथा भाषा में यधार्थता लाने में सहायक हुआ । यह नवीन शैली नव्यन्याय के नाम ते प्रसिद्ध हुई | क्त्वचिन्तामणि नत्यन्याय का आदि ग्रन्थ माना गया । नत्य- न्याय के पारिभाधिक शब्दों के माध्यम से गन्थ प्रणपन करना अन्य दा शनिक समाज में मी पाण्डित्यपुर्ण माना जाने लगा 1 परवर्ती काल मैं अऔैतसिद्धि लघुचात्ट्रका
User Reviews
No Reviews | Add Yours...