मैथिली - साहित्य (संक्षिप्त परिचय ) | Maithili Sahitya (sankshipt Parichay)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) दिका नाम आदर से लिया जाता है । इन लोगों की रचनामों में उय की दृष्टि से भेद कम हू । हाँ, विपय के उपस्थापन में भेद अवश्य उगोचर होता हूं । सन्नहुवीं शताब्दी से मे धिली-साहित्य में नाटकों का समय भाता हूं । हवी शताब्दी से लेकर उत्नीसवी शताब्दी तक अनेक नाटक लिखे ! । नाटकों के केन्द्र मुख्यत: तीन थे-मिधिछा, नेपाल तथा साम। स्थान-भेद से इनमें सिन्नतना मी परिलक्षित होती हू 1 टर्कों का विषय प्रचानत पौराणिक रहा तथा लेखकों में उम्रापति, नपाणि, हर्पनाथ, जगज्जोतिमत्ल तथा शकरदेव के नाम प्रघान हैं । टक पर श्री विनोदजी ने काफी धर कादा डाला है । ग्रन्थ का एक तिहाई शनादकों से ही सम्बन्धित है । ( देखें प्र० ६७ से १३३ तक । ) मे धिली-साहित्य का श्राघनिक काल मयवा पुनरुत्यान काल कवि र चन्दा झा से मारम्म होता है । वे मेंथिलो-्साहित्य के “व्यास कह ति हूं। 'मिथिला-मापा-रामायण' की रचना कर इन्होंने अपने को मर बनाया । विद्यापति के पश्चात्‌ इतना यदषस्वी दूसरा कोई कवि टी हुआ । मेधिली को लोकप्रिय बनाने म इनका योगदान किसी से क्‍ कम नही हू । ये नवीन यंग के प्रवर्तेंक कहे जाते हूं । मेधिलों में स्कृत-वहुढा रचना अपने चरम तक पहुँच चकी थी, जिसका परिणाम हु हुआ कि यद्द एक वर्गे-विशेष तक सीमित हो गयो थो । चन्दा झा मेथिली को इस वन्घन से मुक्त किया । इन्होने जन-साबरण को [न में रखकर अपनी लेखनी उठायी । स्पगार-रस सम्बन्धी कविता की बहुत कम है । इनके गोत मुख्यव सीताराम सम्बन्धी अथवा व-विपयक हूँ, जिनमें भक्त-दुदय का उद्गार ही विदाप हूं ! स्मं- 1 के ह्लास से विपदृग्रस्त देश-दशा-वर्णन इनका मत्यत्त रोचक पा हं। कट्टी-कह्टी मानव-जीवन की नीचता का वित्रण भी सारमिक पराहं। छन्द में ये निष्णात थे, जिसका परिचय हमें शमायण




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