सुधानिधि | Sudhanidhi

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Sudhanidhi by माणकचंद रामपुरिया - Manakchand Ramapuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शीश नवाओ जिसने सृप्टि वनायी उसके- आगे शीश नवाओ। गा सकते हो तो वस उसकी- केवल महिमा गाओ।। कैसे-कैसे फूल खिले हैं- कितने अनमिल स्वयं मिले हैं उसको विस्तृत भू-मण्डल का- सवको रूप दिखाओ | जिसने सृष्टि वनायी उसके- आगे शीश नवाओ ।। चिड़ियों की चह-चह में गाता- उसका ही स्वर प्रतिपल आता वेद-मंत्र की आभा में ही- उसकी ज्योति जगाओ। जिसने सृष्टि बनायी उसके- आगे शीश नवाओ | सुघानिधि




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