भाषा विज्ञान सिद्धान्त और स्वरूप | Bhasha Vigyan Siddhant Aur Swaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 भाषाविज्ञान सिद्धान्त और स्वरूप डॉ हरीश के अनुसार भापाविज्ञान भाषा मात्र के अध्ययन से सम्बद्ध एक गत्यात्मक अध्ययन है। भाषा तत्वों के विश्लेपण-सश्लेघषण संस्वन्धी देशकाल- सापेश व्यवस्थित अध्ययन के फलस्वरूप प्राप्त निष्कर्पो के माध्यम से भाषा भात्र के अयुशीलन एवं सिद्धान्त-चिरूपण सम्बन्धी अध्ययव को भाषा विज्ञान कहते है 1 डॉ निलर्कासिह के मठ से विज्ञान की वह शाखा जिसमे भाषा (उच्च- शिंत) की उत्पत्ति उसके गठन उसके रूप प्रकार्ये अग तथा परिवर्तनों का साकालिक तथा एंतिहासिक स्तर पर वस्तुनिष्ठ विश्लेषण-विवेचन करके विशिष्ट तथा सामात्य नियस निर्धारित किये जाते है भाषाविशान कहते है । 2 परिभाषाओं के संदर्भ को ध्यान में रखकर भाषाधिज्ञान की निम्न परिभाषा दी जा सकती है मापाविज्ञान भाषा के उद्भत्र सरचना विकास आदि का वस्तुनिष्ठ देश- काल-सापेक्ष विश्लेषण-विवेचत है। वास्पव में भापविज्ञान भाषा की उत्पत्ति प्रक्नति और करियाशीलता का वैज्ञानिक अध्ययन है | परिभाषाओं का मूल्यांकन भाषाविज्ञान की जो परिंभाष एँ विद्वानों द्वारा उपस्थित की गयी हैँ उनमे डॉ० श्यामसुन्दर दास और डॉ० उदयनारायण तिवारी की परिभाषा मे भाषा मात्र के विभिन्‍न अंगों और स्वरूपों का अध्ययन निर्दिष्ट है। डॉ० बाबुराम सक्पेना और डॉ० देवीशकर अवस्थी की परिभाषाएं कैबल भाषाविज्ञान शब्द का शाब्दिक अर्थ प्रस्तुत करदी है । इसमें अव्याध्ति दोप है । डॉ? भोलासाथ तिवारी डॉ० मंगगदेव शास्त्रों और डॉ०्अम्नाप्रसाद सुमन की परिशापाओं में अतिव्याप्ति दोप दिखाई पड़ता है। उनमें परिभाषा का गुण--सूभात्मकत्ा--नहीं है । भाषाविज्ञान के सधी ज्ञात अगो और स्वरूपों को अपनी परिभापषा मे समेट लेने का प्रयास इन विद्वानों ने किया है । इन परिभापाओं से भाषाविज्ञान के निम्वाकित पक्षों को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है-- 1. भाषाविज्ञान में भाषा मात्र का विवेचन होता है । 2. देशकाल का परिवेंग बदलने से भापा बदल जाती है । अतः उसका अध्ययन करने वाले शास्त्र के मसनन-विश्लेपण की पद्धति और स्थापनाएँ भी परि- बर्तेन के अधीन हैं । इत कारण भाषा विज्ञात यत्यात्मके (10% प्रद्मापां८) विज्ञान है। 3. भाषाविज्ञान में भाषा का देशकाल-सापेक्ष अध्ययन ट्ोता है । 1. भाषानिज्ञाच की रुपरेखा--डॉ० हरीश पृ० 3 2. नवीन भापाविज्ञात--डॉ० तिलकसिंह पू० 81




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