सुयेनच्वांग | Suyenachvang
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.12 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजचिपुव हर
जाते थे। खयं सुई सप्नाट् 'यांगती' के कालमें मिध्तुओंकेि भरण-
पोपणका चहुन गच्छा प्रचन्ध था 1. वहां किंगतू और साइचिन
प्रदनति परम विद्वान सिक्षु रहते थे जिनसे शिक्षा श्रहण करनेफे
लिये दूर दूरसे भिक्षु चांगानमें आते थे । पर खुईवंशकी शक्तिके
हासके साथ ही साथ जब ॒राजविप्छच मचा तो लोगोंको अपने
श्राण चचाने कठिन हो गये | सब जिधघर तिघर पश्चिमक देशों को
भाग गये। वहां न कोई सिक्षु रददगया था और न चहां पठन-पाठनकी
कोई व्यचस्था ही रद्द गई थी। जान पड़ता था कि सब लोग कान-
कूची भौर तथधागतके उपदेशोको भूल गये थे और 'सते वा
प्राप््यलि स्वर्ग जित्वा वा भोध्ष्यले मद्दीम्'के मंत्रको पढ़कर तछ-
वार्ोंकी मूर्बा साफ करनेमें प्रदत्त थे जिसे देखों वद्दी हथियार
चाघे 'युद्धाय कछत' निश्चय था । न किसीको धर्मकी चिंता थी
न की घर्मकथा मर धर्मों पदेशके शब्द ख़ुनाई पड़ते थे। निदान
वेवारे सुयेनच्चांगको जिसका उद्देश्य चिद्याध्ययन करना था
चांगानमें भी शाति न मिली । वह चुपचाप बैठकर रोटी तोड़नेके
लिये नहीं उत्पन्न हुआ था और न उसका जन्म शख्र श्रहण कर
देशके दित संत्राम करनेद्दीके लिये हुआ था । उसका जन्म हुआ
था चिघाध्ययन करने, देश देशक्ों यात्रा करने और चिदेशसे
'घर्म-प्रंथोंको खोजकर डनके अनुवाद कर अपने देशके साहित्यके
भांडारको भरने गौर घर्मका संशोधन वररनेके लिये। हद चप-
चाप अपने पेटको पालनेवाव्ठा और विपन्तिके दिनको काटनेचाला
नददीं था । चद्द अपना मन उदास कर अपने भाईसे बोला कि
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