क्रिसन - रुकमणी-री वेलि राठौड़ पृथ्वीराज - री कही | Krisan-rukmani-ri Veli Rathore Prathviraj Ri Kahi

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Krisan-rukmani-ri Veli Rathore Prathviraj Ri Kahi by नरोत्तमदास - Narottam Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना ७ शब्द बनने और उस दूसरे अर्थ के वाचक हो जाने के कई उदाहरण मिलते है। (१९२) प्रस्तुत लेखक का सत (१) संस्कृत-प्राकृत की कविता पिंगल-रचित छुंदशास्त्र मे बताये छंदों मे लिखी गयी । अपभ्र॑ंश ने लोक-साहित्य से अनेक नये छंद बनाये जिनका समावेश प्राकृत-पिंगल स्वयभू-छंद आदि नवीन छंद-ग्रंथों में किया गया । देश-भाषाओ के विकास के समय लोक-साहित्य क्े आधार पर और नये प्रकार के छंद बनाये गये । पूर्वी कवियों ने जिनमे भाट (ब्रह्मभट्ट) प्रधान थे पदों का आविष्कार किया और पश्चिम के चारण कवियों ने (चारणी) गीतों का । ब्रह्मभट्ट लोग पिंगलानुमोदित छंदों मे भी रचना करते रहे उनकी रवनाओं में पदों को अपेक्षा पिंगलासुमोदित छदों की ही प्रधानता रही । पर चारणों ने इन छंदों को अपेक्षा गीतों को प्रधानता दी । पिंगलातुमोदित छंदो मे लिखी गयी कविता की भाषा (ब्रजभाषा) पिंगल नाम से प्रसिद्ध हुई । उसी के वजन पर पिंगल के छंदों से भिन्न गीतो मे लिखी गयी कविता की भाषा का डिंगल नाम पड़ा। इस प्रकार डिगल दाब्द जैसा कि गुलेरीजी कहते है निरथक है और पिंगल के वजन पर गढ़ा गया है । (२) एक संभावना और भी है । कुशललाभ-रचित पिंगलशिरोमणि ग्रंथ मे उडिगल नागराज का एक छंदशास्त्रकार के रूप में उल्लेख हुआ है । छंदों का सर्वेप्रथम विवेचन करने वाला पिंगल नाग हुआ । जब अपभ्रंश-काल में नवीन सात्रिक छुंढो का प्रयोग होने लगा तो उनका आविष्कारक भी पिंगल ही माना गया और उसी के नाम पर प्राकृत-पिंगल ग्रंथ बना । इस प्रकार पिंगल कविता मे प्रयुक्त छुंदो का आविष्कारक पिंगल नागराज प्रसिद्ध हुआ । जब डिंगल गीतों का आविष्कार हुआ तो उनका सम्बन्ध भी किसी प्राचीन महापुरुष से जोड़ना आवइयक जान पड़ा और पिंगल नागराज के समान उडिगल नागराज की कल्पना की गयी । संभवत. यह उर्डिगल दब्द ही डिगल का मूल है । डिगल और पिगल--पश्चिमी राजस्थान सौ राष्ट्र कच्छ आदि के पदिचमी प्रदेश में चारणों का जोर रहा और पूर्वी राजस्थान ब्रजमंडल आदि के पूर्वी प्रदेश में ब्रह्मभट्टों का (जिन्हें भाट भी कहा जाता है पर जो वंशावली आदि रखने वाले भाटों से भिन्न है) । चारणों ने गीत-दौली लेकर इस प्रदेश की भाषा राजस्थानी मे काव्य-रचना की और ब्रहमाभट्टों ने पिगल के छंदों तथा पदो को लेकर ब्रजभापा मे रचना की । दोनो की रचनाएं वीर-रस-प्रधान थीं व्‌ उदाहरण के लिए कर्म (प्रधान कर्म [006८८ (0जुं०८० से कलम (गौण कमें 1प्रत्कद८६ 00णुंष्ण0 गौर कंवर (जिसका पिता जीवित हो) से भंवर (जिसका दादा जीवित हो) ।




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