ममता | Mamtaa

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Mamtaa by ओंकार शरद - Onkar Sharad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अमता | श्रीधर ने सोचा कि ममता से वह और रहने की प्राथना करे । शायद ममता मान जाए | श्रीधर जानता है कि ममता उसका कितना श्रादर करती है । शायद उसके सन में भी श्रीघर की ही तरह उसका स्नेह अपनी सीमा लांघ कर वहाँ पहुँच चुका होगा जहाँ श्राज श्रीधर खड़ा है परन्तु केसे कहा जाए ? इन स्त्रियों के मन की थाह नहीं है । लेकिन यह विचार आते ही श्रीघर के सामने ममता के करें रूप एक साथ जैसे नाच उठे एक बार उसने कहा था कि वह शादी अपने पसन्द से करेंगी । शादी- विवाह के चुनाव में न तो वह समाज जानती है न जाति बस उसे अपनी पसन्द चाहिए | तो क्‍या श्राज वह ममता से झ्पने मन की बात बता दे ? लेकिन नही उसमें इतनी शक्ति नहीं । कल से जब से ममता आई है तब से जाने कितनी बार कण्ठ तक बात लाकर भी वह न कह पाया । इसीलिए सोचता है कि यदि ममता रुक जाती तो शायद हिम्मत करके वह कुछ कह पाता । लेकिन वह जानता है कि न तो वह रुकेगो न वह कह पावेगा | श्र कहे मी क्यों ? क्या यह आवश्यक है कि कहा ही जाए १ यदि ममता के हृदय में उसके प्रति तनिक भी मोह है तो वह खुद भी तनुमभव कर सकती है |) और ्पने व ममता को लेकर श्रीघर इतना उलभक गया कि दरार कुछ न सोचकर वहीं घूम-घूम कर सोचता रहा कि श्राखिर वह ममता को कैसे रोके या उससे झ्पनी बातें कह कर कैसे एक फैसला कर ले ? पर शायद दो में से एक बात भी सम्भव न हो सकेगी तभी ममता ने अ्ंगड़ाई ली श्र उसकी नींद खुल गई । वह आँखें खोल कर श्राइचर्य से ढलते हुए दिन के धुधले प्रकाश में श्रीघर का परेशान चेहरा देखने लगी । कितना बजा होगा ? मुँह पर हाथ रखकर जम्हुश्राई को रोकते . श्३




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