जीवन की पाठशालाएँ | Jkiwan Ki Path Shala

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Jkiwan Ki Path Shala by ओंकार शरद - Onkar Sharad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कु ( १३ कुछ गाना दोना चाहिये! एक गाना सनाझो ।” उसने प्लेतनेव से कहा । अपने घुटने पर गितार रखकर जार्जे ने गाया; 'ललाक्न सूरज ऊग झा ” उसकी मद्दीन 'यावाज श्ात्सा के दप्त कर रददी थी। सब कोई खामोश बैठे थे । काफी ।लोग इकट दो गये थे। उस व्यापारी की स्त्री ने कहा, 'तुम बहुत दी अच्छा. गाते हो ।” _ मारूसोवका के पीछे दो गलियाँ थीं । दूसरी के भन्त सें निकीफोरिच का छप्पर था । यह लम्बा बूढ़ा ्ञादमी हमारे सिले सें पुलिस कप्तान था। उसके छाती पर अनेक तगयें लगे थे । वट्ठ बहुत शिष्ट था । उसकी चमकती 'ॉर तेज छांखों के कारण वह काफी धलतुर भी दिखाई पढ़ता था। वद्द दम लोगों के मकान पर निगाद्द रखता था । शक्सर दिन में वह छाता भी था । झक्सर वह चुपचाप झ्शकर खिड़कियों से भीतर के . दृश्य भी देखा करता । उस जाड़े सें माख्सोवका के रहने वाले कुछ किरायेदार पकड़ गये थे । उनसें एक फौजी झफसर स्मीरनोव, आर सिपाही सुरातोव भी थे जिनके पास सेंट जाजें के कई पदक भी थे । इनके अलावा जोवनीन, 'ोवसी झान्कीस, प्रिगोरिच, क्रिरठोव झौर कुछ और थे। उन पर एक रोर कानूनी प्रेस चलाने का जुमें था । गिरक्कार द्वाने वालों में एक 'ीर था जिसे हम लोग “उत्वी मीनार' कहते थे । छुवद् व्योंह्ी मेंने जाज॑ के उसकी गिरफ़ारी का समाचार दिया कि उसने घबड़ा कर फद्दा; 'दोड़ो सैक्सिम, लितनी जल्‍दी संभव हो'** *” छोर मुझे पता चताया ध्लौर कहा; 'द्वेशियारी से जाना चदों जासूस लगे होंगे 1 मैं उसकी छाज्ञा लेकर सागा ।'




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