मानसरोवर भाग - १ | Mansarovar (bhag - 1)
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.73 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-बपसससरमसम्ससरिमसलसयमससवससिसमरटययमसिनिरििसतं अलग्योमा २१ शेले उन्दों से अलग दो जाें अपने प्यारों को घर से निकाल बादर रू । उल्रका गला फेंस गया । कॉपते हुए स्वर में वोला--तू क्या चाइतो है कि में अपने भाइयों से भला दो नाऊँ । भला सोच तो कहीं मुं द दिखाने लायक रहूँगा १ मुलिया--तो मेरा इन लोगों के साथ निबाद न होगा । रग्घू--तो तू अलग हो जा । सुमे अपने साथ क्यों घसीटती है । मुलिया तो मुझे क्या ठुम्द्वारे घर में मिठाई मिलतो है मेरे लिए क्या ससार में नगद नदीं है १ र्घू--तेरी जेसी मर्जी जहां चाहे रद । में अपने घरवालों से अलग नहीं दो सकता । जिस दिन इस घर मे दो चूल्हे जलेंगे उम्र दिन मेरे कछेजे के दो टुकड़े दो लायेंगे । में यद चोट नद्दों सद सकता । तुझे जो तकलोफ दो वह में दूर कर सकता हूं। माल-असबाव की मालकिन तू है दो अनाज-पानों तेरे दो दाथ है अब रद्द कया गया है ? अगर कुछ काम-घन्घा करना चट्टीं चाइती मत कर । भगवान् ने सुझे समःई दी द्ोती तो में तुझे तिनका तक उठाने न देता । तेरे यह सुकुमार दाथ-पाँव मेहनत मजूरी करने के लिए बनाये ही नहीं गये हैं मगर क्या करूँ अपना कुछ नस ही नहीं है । फिर भी तेरा जी कोई काम करने को न चाहेमत कर मगर सुकसे अल द्ोने को न कद तेरे परों पढ़ता हूं । मुलिया ने सिर से अन्चल खिसकाया भर ज़रा समीप आकर बोली--मैं काम करने से नट्दीं डरती न बेठे-बेंठे खाना चादती हूँ सगर मुम्हसे किसी को धौंस नहीं सद्दी जाती । तुम्दारी दी काकी घर का काम-काज करती हैं तो अपने लिए करती हैं अपने बाल-घच्चों के लिए करती हैं । मुझ पर कुछ एदसान नददीं करतीं । फिर मुम पर धौस क्यों जमाती हैं ४ उन्हें अपने बच्चे प्यारे होंगे मुझे तो ठुम्दारा आसरा है। में अपनी आँखों से यदद नद्दीं देख सकती कि सारा घर तो चेन करे ज़रा-ज्ञरा-पे बच्चे तो दूध पीयें और जिसके वल-बूते पर श्रदस्थी बनी हुई है वदद भट्ट को तरसे । कोई उसका पूछनेवाला न हो । ज़रा अपना सुँद तो देखो कसी सूरत निकल भाई है। औरों के तो चार बरस में अपने पट्टे तेयार दो जायेंगे । तुम तो दस साल में खाट पर पढ़ जाओगे । बेठ जाओ खड़े क्यों दो ? क्या मारकर भागोगे १ मैं तुम्हे ज़बर- दस्ती न बाँघ छगी या मालकिन का हुक्म नदीं है १ सच कहूँ तुम बढ़े कठ-कछेजी दो। मैं जानती ऐसे नि्मोद्टिये से पाला पढ़ेगा तो इस्र घर में भूल ले न आती । कर
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