यज्ञोपवीत संस्कार | Yagopaweet Sanskar

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Yagopaweet Sanskar by क्षुल्लक ज्ञानसागर जी महाराज - Kshullak Gyaansagar jee maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थीकोतरामाय नमः । धर्म आर सन्मागंका स्वरूप। नगर 1 हनन वेद: घुराण #स्मृतयश्चारित्र च क्रियाविरिः मन्त्रारच देवतालिंगमाहारादारवशुद्धय: । एतेथां यत्र तस्वेनप्रणी ता: परमर्षिणा सघम सच सन्पागस्तदा मासाः स्पूरन्पया । भावाय जिस भब्यजीव की गाढ़ अद्धा-प्रथमानुयोग 'यर- शानुयोग करणानुयोग ओर द्रव्यानुयोग इन चार वेदों पर है। समस्त वेदों को प्रमाणरूप सत्य मानता है । वेदों में से एक अक्षर दर भी जिसका संदेद सब था नहीं दे । पुराणों को जो जिनागम समझता दै । स्मृतिग्रन्थों को आज्ञा विधायी ( स्पतिप्रन्थ सब ध्ोस सब काल में अविष्छिन्न रूप से नियमित रूप रहते हैं ) शाख्र सम- झता है जो चारित्र का पालन करता दै। जो भोजनझुद्धि, पिंडशद्धि यज्ञोपवीतादि संस्कार की क्रियाओं का पालन करता डे। मन्त्र से अस्सृतिप्रन्थ से संहिताप्रन्थ--भद्बाइसंहिता मादि सब प्रन्थ, आग बर्णाचारप्रन्थ--प्रिवर्णिकाचारमादि मान्य प्रन्थ




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