राजस्थानी बन्ना | Rajasthani Banna
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.48 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ढ )
ित्र अपनी वेयक्तिक विशेषताओं के साथ इन कहानियों में देखने को
मिलता है । परन्तु खेद इस बात का है कि वर्त मान काल में इस कहानी
कहने और लिखने की रुचि में बढ़ी भारी शिथिलता आ गई है भर
आशंका होती है कि मौलिक रूप में इन कहानियों की नये सिरे से रचना
बहुत शीघ्र विल्लुप्त हो जायगी । *
राजस्थानी बातों से उध्चत करके भाषा और शैली के कुछ उदाहरण
नीचे देते हैं ।
वर्णनात्मक शैली का प्रसादपूर्ण चमत्कार ज्ञादेव पैँवार की “वात
( कहानी ) के प्रारंभ में देखिये--
(क ) “मालवो देश महि धारा नगरी । ते पवार उदियादीत
राज करे । ने तिणरे राणियाँ दो, तिण महि पटराणी बाधेली । तिणरे
दँवर रिणधवल हुवो। ने दूजी रांगी सोंषिणी । तिका दुह्दागण ।
तिणरा कँवर को नाँव जगदेव दौधों । साँवर रंग, पिण श्योतिधारी
ने रिणघवल राजरों घणी ।”
दृश्य चित्रित करने वाली छपुष्ट मनोर॑जक वर्णनशेली का भी नमूना
दिया जाता है--
( ख ) “रात घड़ी एक दो गई । तद् ढको छणियो । तरे योगेसर
जांणियो कोई सिरदार आवे छः । तिसे हाथीरी वीरघंट छणी, तुररी
सहनाई छणी, घोड़ां की कलह छणी । चराकां सौ-एक संढा आगे
हुवां चैंवर हुल'ताँ हाथी माथे बेठो सिरदार दीठो । तिसे देदक जववार
महिलाँ जाया । तिसे फरास आय सैलाँ आगे चौक महि लाजम
हुलीचा बिछाया, गिलमां बिद्याई, तकिया लगाया । तिसे तेजसीजी
गादी तक्ताँ आय बैठा । जोगेसर तसासा देखे छः /”
(ग ) ““भाक फाटी । जोगेसर जागियो । देखे तो लोक फिरे दा
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