राजस्थानी संत शिरोमणि राणी रूपांदे और मल्लीनाथ | Rajasthani Sant Shiromani Rani Rupande Aur Mallinath

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Rajasthani Sant Shiromani Rani Rupande Aur Mallinath by डी बी क्षीरसागर - D B Sheersagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका [५। | दिया। नाथ सप्रदाय सबके लिये खुला था हिन्दू हो या मुसलमान इससे धर्मान्तरण पर कुछ रोक लगी और न हिन्दू न मुसलमान वाली जीवन पद्धति को प्रश्नय मिला | राजस्थान के प्रसिद्ध पाबूजी रामदेव आदि पाँच पीरों को लोकप्रियता को भी इसी के मूल में देखना चाहिये। योग की महिमा जानते हुए भी उसकी कठिनता का अनुभव करने पर उसके अनुयायियों जिनमें अतिवर्णाश्रमी और विधर्मियों की बहुलठा थी ने अपनी उपासना के लिये नये नये तथैक खोजने शुरू किये। इससे नाय सप्रदाय मे अनेक विकृतिया आ गई ओर धीरे धरि नाथ पीठ भोग पीठों में परिवर्तित होते गये। विशेषकर मारवाड में जोगी जगम शुसाई सेवडा कातमेलिये आदि जातियों में नाथ के विकृत स्वरूप को हम आज भी देख सकते हैं। इन लोगो ने नार्थो के बाह्य स्वरूप को बनाये रखा। परन्तु नाथ सप्रदाय के यों दूटते रहने से नाथो कौ उपासना पद्धति वैदिक कर्मकाण्ड ओर तात्रिक ठपासनां के सस्कारोँ ने समाज में अनेक प्रकार की साधना पद्धतियों को जन्म दिया क्यो की सनातन काल से चली आ रही मनुष्य की देवयु बनकर दिव्यत्व प्राप्त करने की कामना अभी मरी नहीं थी। इन साधनाओं को ह्म लोकसाधना कह सक्ते है । मारवाड में प्रच्छन्न रूप से चला कृष्डापय भौ इन्दी लोकसाधना्ओं का एक प्रकार कहा जा सकता है जिससे रूपादे ओर मल्तीनाय किमी न किसी भकार से जडे रहे हैं। राष्ट्र रक्षा और जनकल्याण का कार्य करते हुए शरीर के क्षोण होने पर वानप्रस्थी होकर चृक्ष की शाखाओं का आश्रय लेने वाले भरतवशी श्त्रियो कौ तरह मारवाड के राठौड वश के यशस्वी शासक के रूप में प्रसिद्ध मल्लीनाथ “मालो रावल पीर” नाम से जनग्रद्धा के प्रिय पात्र बने। राजस्थान का दक्षिण पश्चिमी भू भाग उन्हीं के नाम पर मालाणी कहलाया। सुल्तान की सेना के तेरह मॉंचों के साथ लड़ने वाले दिल्‍लीश्वर को अपनी चतुराई ओर बाहुबल से श्रसनन कर गुजरात विजय कर इतिहास में अमर हुए दुर्घई योद्धा मल्लीनाथ ने अपना राज्य अपने भतीजे चूँडा को देकर किस प्रकार राठौड शासन को मारवाड मँ स्थिर किया यह बात इतिहासविदों के लिये नयी नहीं है पर स्वाजजित भदेश को यों छोड देना आसान नहीं था। वि १३८५ १४५६ उनके जीवन सर्प ओर विए्ल जीवन कौ अवधि माना जाता है । प्रसिद्ध पीर बाबा रामदेव के ये न केवल समकालीन थे बल्कि उनके कृपा प्रसाद से अनुमहीत भी हुए थे और अपनी उपासना ओर चपस्या से अनेक चमत्कारिक सिद्धिया उन्हें प्त हो गयो थ । उनका शत्र तेज विरक्ति से कैसे अभिभूत हु ओर उनका जीवन “सर्वभूतहिते रत” कैसे हुआ यह चर्चा उनकी पली रूपादे के त्याग भक्ति ॐ अलौकिक विवेचन से मारभ करना अधिक उपयुक्त होगा 1 मल्तीनाय ओर सूपादे के आपिभण्ण रे भं इतिहास से इवर अनेक लोकमान्यताए प्रचलित रही हैं। संभव है कि उनम अछार्वत्व को देख़कर इन्हें गढा गया हो और वे इतिहास वी दृष्टि से कहीं न उव यर उनके कार्यों की लोकोत्तरता को देखकर




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