राजस्थानी बन्ना | Rajasthani Banna

Rajasthani Banna by घनश्यामदास विड़ला - Ghanshyamdas vidala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ढ ) ित्र अपनी वेयक्तिक विशेषताओं के साथ इन कहानियों में देखने को मिलता है । परन्तु खेद इस बात का है कि वर्त मान काल में इस कहानी कहने और लिखने की रुचि में बढ़ी भारी शिथिलता आ गई है भर आशंका होती है कि मौलिक रूप में इन कहानियों की नये सिरे से रचना बहुत शीघ्र विल्लुप्त हो जायगी । * राजस्थानी बातों से उध्चत करके भाषा और शैली के कुछ उदाहरण नीचे देते हैं । वर्णनात्मक शैली का प्रसादपूर्ण चमत्कार ज्ञादेव पैँवार की “वात ( कहानी ) के प्रारंभ में देखिये-- (क ) “मालवो देश महि धारा नगरी । ते पवार उदियादीत राज करे । ने तिणरे राणियाँ दो, तिण महि पटराणी बाधेली । तिणरे दँवर रिणधवल हुवो। ने दूजी रांगी सोंषिणी । तिका दुह्दागण । तिणरा कँवर को नाँव जगदेव दौधों । साँवर रंग, पिण श्योतिधारी ने रिणघवल राजरों घणी ।” दृश्य चित्रित करने वाली छपुष्ट मनोर॑जक वर्णनशेली का भी नमूना दिया जाता है-- ( ख ) “रात घड़ी एक दो गई । तद्‌ ढको छणियो । तरे योगेसर जांणियो कोई सिरदार आवे छः । तिसे हाथीरी वीरघंट छणी, तुररी सहनाई छणी, घोड़ां की कलह छणी । चराकां सौ-एक संढा आगे हुवां चैंवर हुल'ताँ हाथी माथे बेठो सिरदार दीठो । तिसे देदक जववार महिलाँ जाया । तिसे फरास आय सैलाँ आगे चौक महि लाजम हुलीचा बिछाया, गिलमां बिद्याई, तकिया लगाया । तिसे तेजसीजी गादी तक्ताँ आय बैठा । जोगेसर तसासा देखे छः /” (ग ) ““भाक फाटी । जोगेसर जागियो । देखे तो लोक फिरे दा




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