अकबर | Akbar

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Akbar  by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हेमचम्दर ( देमू ) '् अपना केन्द्र हुआ। उसकी वीरता झौर उदार विचारोंसे श्राकृष्ट होकर मोअपुरी सेनिक श्रौर सामन्त दौड़-दौड़ कर उसके भरडेके नीचे खड़े होने लगे । बहुत समय नहीं बीता, कि वह्द विहारका शाह बन गया श्रौर शेरशाहके नामसे प्रसिद्ध हुआ । बाबर ने हिन्दुस्तानको जीता था; लेकिन उसके लड़के हुमार्युको हरा कर शेरशाह ने हिन्दु- स्तानसे भागनेके लिए मजबूर किया । एकके बाद एक हार खाते हुए सिन्घनदसे भी पश्चिम भाग कर हुमाये को कया श्राशा हो सकती थी, कि बह फिर हिन्दुस्तान लोट कर गद्दी पर बैठेगा। शेरशाहके जीते जी हुमायें को यह नसीब नहीं हुआ्ा । भोजपुरियों की तरह झवघी-भाषी मी शेरशाहके सहायक हुये, क्योंकि शेरशाहको जौनपुरका श्वमिमान था । शेरशाह जौनपुरसे भी एक कदम श्रागे बढ़ा । उसने उन बहुत सी बातोंको करने में पहल की, जिनमें हम अकबर को श्रागे बढ़ते देखते हैं । देशके एक छारसे दूसरे छोर तक सड़कके किनारे फलदार इच् तथा थोड़ी-थोड़ी दूर पर सराय श्रौर कुएँ बनवानेका काम शेरशाहने शुरू किया था । सबसे जवाबदेह पदोंके लिए हिन्दुओं पर पूण विश्वास रखनेका भी श्रारम्भ शेरशाहने किया था । उसके शासनमें हिन्दू बड़े से बड़े मन्त्री श्रौर सेनापतिके पद पर पहुँच सकते थे। लोग शेरशाहको न्याय श्रौर धर्म का श्रवतार मानते थे । शेरशाह जनसाधारणुमें पैदा हुआ्रा श्रौर उन्हींके सहयोगसे ऊपर बढ़ा । बिहारका बेताज का शाह हो जानेपर भी वह एक साधारण सिपाही की तरह काम करनेफे लिये तैयार था। जिस वक्त हुमा्युका दूत उसके पास पहुँचा था, उस समय वह श्रपने सिपाहियोंकी तरह फावड़ा लेकर खाईं खोद रहा था; श्रौर फावड़ा हाथमें पवड़े ही उसने हुमायुके दूतसे बात की । वह बतलाना चाहता था, कि मेरेलिये तख्त श्रौर जमीन दोनों सुपरिचित चीज हैं । मुसलमानी सुल्तानोंने सरकारी सेवाश्रोंके बदले जागोर देनेका नियम बनाया था । जागीरदार श्रपनी जागीर में मनमानी करते श्रीर बेचारे किसान पिसते थे । शेरशाहने जागीर नहीं वेतन मुकरर कर दिया । उसके सिपाही प्रजाको सता नहीं सकते थे । इतना कड़ा नियम था, तो भी सिपाही इरुके कारण नाराज नहीं थे, वे श्रपने नेताको भगवान्‌ मानते थे। शेरशाहने ही वह सीषे- सादे लड़ाके सिपाद्दी तैयार किये, जो पीछे कम्पनीकी सेनाके रीढ़ बने । शाहबांद- सहसरामकों श्रपना गढ़ शेरशाहने जान-बूभक कर बनाया था । भोजपुरी तरुण लाठी और तलवार के गुणको जानते थे, श्रब उन्होंने फलीतेवाली बन्दूकें चलाना भी सीखा । चौसाके नामसे सभी लोग परिचित हैं। शाहबादके चौसा गाँवमें ही शेरशाहने हुमायूंका छत्रमंग किया, वहाँसे पैर उखड़ा तो वह फिर जम न पाया । २, कुल प्राचीन कालसे ही ब्यापारियोंके सार्थ (कारवाँ) और देशोंकी तरह भारतमें




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