घनआनंद और आनंदघन | Ghananand Aur Aanandghan

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Book Image : घनआनंद और आनंदघन  - Ghananand Aur Aanandghan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) पूजाविधि मैं होता है जिसके लिए संप्रति कोई छाधघार इनकी रचना सै नहीं मिला । पूर्वोक्त चित्र भी शझप्राप्य है इससे इसका विचार भविष्य के लिए छोदते हैं । श्रव सिद्धांत पर झआइए । झाचायों के चार प्रमुख सिद्धांतों के झनु- सार चार सैंप्णव सप्रदाय है--श्रीरामालुजाचार्य का विशिष्टाटरेलवादी श्री- संप्रदाय श्री निंबारकाचार्य का ट्वेताद्वेववादी सनकादि संप्रदाय श्रीमध्वा- चाय का द्वेतवादी ब्रह्म-संप्रदाय श्र श्रीवसलभाचाये का. शुद्धाद्ेतचादी रुद्र-संप्रदाय या पुष्टिमार्य । इन सभी संप्रदार्यों का उदय श्रीशंकरा- चाय के मायावाद के निरसन के लिए हुआ है । मक्ति इनका प्रधान लद॒प है । शांडिल्यसूत्र के झनुसार सा ( भक्ति ) परानुसक्तिरीश्वरे को सभी मानते हैं। पर उपासना में किसी विशेष भाव या रस की म्रधानता मानकर चलते हैं। श्रीसंप्रदाय में. दास्य स्वीकृत है माध्व संप्रदाय में माघुरय निंवाकं- सप्रदाय में सख्य ध्यौर पुष्टिमार्ग मे वात्सल्य। तारतम्य के विचार से गोविंदभाष्य में पाँच प्रकार की उपासनाएँ कही गई हैँ--शांत दास्य वात्सल्य सख्य छोर माधुर्य। माघुर्य या मधुर रस में पूर्वोक्त चारो निहित हैं सख्य मैं पूर्वोरि्लिखित तीन श्र चाव्सल्य मे दो । ्धिक विस्तार न करके यद्दी कदना प्रसंगप्राप्त है कि श्री संप्रदाय घर पुष्टिमार्ग से इनका संबंध नहीं जान पढ़ता । गोपाल या वालसुकुंद की उपासना का ्याभास इनकी कृति मे कहीँ नहीं मिलता । श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का जो वर्णन है वढ़ सभी सप्रदायों के श्वनुकूल है । प्रत्युत यद्द कद्दा जा सकता है कि श्रीराधिका- जी के जन्मोत्सत्र का वर्णन चर्लभ-कुल्त से इनका संघध स्वीकृत्त करने के पत्त मे नहीं हे । चर्लभ-कुल के कवि श्रीकृष्ण के सपके में राधा का वर्णन तब करते हैं जब वे योचारण के लिए बादर निकलते हैं । सूरदासजी ने भी ऐसा दी किया है । इसलिए देखना चाहिए कि ये निंबार्क संप्रदाय मे दीक्षित थे या माध्व संप्रदाय से । उपासना की इष्टि से इन दोनो संप्रदायों मे प्रमुख सेद यह है कि निंदाक-संप्रदाय मै ( दवितदरिचंशाजी के राघावल्लभी था व्नन्य सप्रदाय ्बौर श्रीदरिदासजी के टट्टी सप्रदाय मे थी ) राघाजी की स्वकीया- भाव की उपासना चलती है और माध्व चेतन्य सप्रदाय में परकीया-भाव




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