नहुष | Nahush

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Nahush by श्री मैथिलीशरण गुप्त - Maithilisharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह रहा मानस तो अमरों के ओक में गात्र मात्र ही है मोतियों का नरलोक में ही ७ सम पाकर. इसीको. रवि-रद्मि-दार दूसके | होती है. सदेव नई ब्रूद्धि परम में अमर न होगा कौन इस जल-बायु में ? गन्ध प्रथिबी का झुण व्योम भर जो बढ़ा आफके यहीं उन्नति की चूड़ी पर हे चढ़ा मिछता दर्द से ही सुख है परस का पार क्या परस के बरसते-से रस का | डोछती-सा -बोढता-सा एक एक पणें है बण-पीतता में भी सुबण ही सुबण हे । धूल उड़ती हैं तब फूलों के पराग की पत्र - रचना - सी पढ़ती है अनुराग की घन का क्या-यहाँ जीवन अशड हैं कितनी सजर्देता है किन्तु कहाँ पड़ है ? झाचो




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