ईरान का सांस्कृतिक इतिहास | Iran Ka Sanskritik Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भौगोलिक यणन च ऐसा न था। लाजवरद (छा 18201)... की चहुत सी पाने दासांघन्द्‌ पहाड में पाई जाती थीं चॉंदी की खाते भी थीं मगर इनसे लाभ नहीं होता था [ कोयला भी तेदरान फे पाल निकलता या. शरीर तांबा भी सब्ज़वार के फ़िम में । पेटोल काफेशस से फास की खाड़ी तक फंला खुश हि सगर इसे पहले की निस्वत धन उयादा सिकाला जाने लगा. हे। द्ाज्ञबाईजान से लोहा सीसा श्रौर त्तांचा पाया जाता है | तिजारती रास्ते यहाँ की सकें स़चरों के चलने के कच्चे रास्ते हे जो कहीं चौदे ्ौर कही पतले हैं और जानपरों के ख़ुरा से उनके निशान मिटे मिटे है मगर इन रास्तों से सद्च तरह का काम लिया जाता है यहाँ तक कि जरूतत के चक्त फोजे भी इन रास्तों से ले जाति हैं। हमदान ्रीर सखूसियाना के बीच में सदर्के थीं । बन्दुर झब्यास से चलकर सड़क दरावजीद (10780 ते) तक आती है यदाँ से सबक दो टिस्सों में येंट जाती है श्र दोनों सड़कें दो मुख्तलिफ तरफ़ से शोती हुई शीराज़ञ तक श्राती हैं । उनमें से एक दइ्ागे जाफर पुलवार की घारी में से गुजरती है जहाँ परसीपोलिस के स्सणइद्र हैं शरीर इस्फदान तक चली जाती है । रें (पर) से एक सदक कज़वीन होती हुई श्ाज्रवाइजान सक आड़े है । खुरासान के बाहर एक सदक मशहूद से निशापुर तक गईं हे और आगे अलबुजं के नीचे नीचे होती हुई दमगान (0200ट्ाए20)0 प्रौर समनान (5वाएथ0 लक गई है श्र यहाँ से फिर आगे तबरिस्तान (ए2७ढाडसा0 लक चली गईं है। चदद सड़कें बहुत पुरानी है श्औौर चहुत से जीतने वाले लशकरों ने इनको झपना रास्ता बनाया हू यदइ जो यालें इंसान के बारे में ऊपर बताई गई है इनके संबंध में छुद और यातें भी उपादा सफपील ले आगे आयेंगी जिनसे यहाँ की




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