मालिक मुहम्मद जायसी और उनका काव्य | Malik Muhammad Jayasi Aur Unka Kavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24.16 MB
कुल पष्ठ :
217
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द मलिक मोहम्मद जायसी और उनका काव्य लगभग ३४५ वर्ष पश्चात् अवधी भाषा की दूसरी सर्वश्रेष्ठ कृति का प्रणयन हुआ | यह गोस्वामी तुलसीदास का प्रसिद्ध ग्रन्थ _ रामचरितमानस है । अवधी के थे दोनों ग्रत्थ-रत्न दो भिन्न चिन्ता-घाराओं के प्रतिनिधि काव्य-ग्रन्थ हैं । रामचरितमानस में नानापुराणनिगमागम सम्मत निगु ण-निराकार ब्रह्म को सगुण-साकार रूप में उप- स्थित किया गया है । प्मावत में लोक और साहित्य समादत पद्मावती की कथा द्वारा अलौकिक ईश्वरीय प्रेस की मार्मिक अभिव्यक्ति करते हुए निणुं ण-निराकार प्रेम-प्रभु की आरती उतारी गई है। पद्मावत में सूफी और भारतीय सिद्धान्तों के समन्वय का सहारा लेकर प्रेम-पीर की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की गई है तो रामचरितमानस में भारतीय सगृण भक्ति की धारा शत-सहस्र द्ाखाओं में फूटकर प्रस्रवित हुई है और मर्यादा लोकमंगल एवं आदर्श की अमर गाथा का आकर बन गई है । इन्हीं मूलभूत सैद्धान्तिक अन्तरों के कारण दोनों रचनाएं दो भिन्न प्रकार की रचनाकोटि में आती हैं। रामचरितमातस शास्त्रोन््मूख (क्लैसिकल ) अधिक है । प्रबंध-संघटन रचना-कौशल भाषा छन्द शेली इत्यादि सभी दुष्टिकोणों से तुलसीदास ने भारतीय काव्य-पद्धति का अनुसरण किया है । इसके ठीक विपरीत पद्मावत लोकोन्मुख है । जायसी ने अपनी समय तूलिका और लोक-जीवन के प्रगाढ़ अनुभव से पद्मावत की काव्यभुमि पर लोक और काव्य के अनेक उपादानों और प्रसाधनों के द्वारा उत्कृष्ट और गाढ़ अभिव्यंजना का विधान किया है । क्या भाषा और क्या भाव क्या रचना-शिवत्प और कया छन्द क्या कथा-दस्तु का संघटन और क्या रूप-सौन्दयें वर्णन इत्यादि सभी दुष्टि- कोणों से जायसी ने लौकिक और शास्त्रीय पद्धतियों का सुन्दर समन्वय किया है परि- णामस्वेरूप पद्मावत में सहज ही एक अनूठा सौंदर्य आ गया है । पद्मावत के अतिरिक्त जायसी के और भी अनेक ग्रन्थ हैं इनमें अखरावट आखिरी कलाम कहरानामा चित्ररेखा और मसलानामा अभी तक उपलब्ध हो सके हैं । प्रस्तुत प्रबन्ध में इन सब उपलब्ध ग्रन्थों के सर्वाज्जीण विवेचन का प्रयत्न किया गया है । मध्ययुग में जायसी की कृतियों का बड़ा व्यापक प्रचार था । अराकान के मगन ठाकुर के राजकवि अलाओल ने बंगाल में इसका अनुवाद किया था । फारसी में बज्मी आदि के. अनेक अनुवाद ग्रन्थ मिलते हैं । पद्मावत तथा जायसी की अन्य कृतियों की प्रतियों के आधिक्य से भी यह बात स्पष्ट है । यद्यपि मध्ययग में जायसी की प्रसिद्ध व्यापक थी तथापि बीसवीं शताब्दी के पहले हिन्दी में जायसी को पुराने लोगों ने स्थान नहीं दिया । बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण तक भी इनके मूल्यांकन का प्रयत्न नहीं हुआ । इस उपेक्षा का प्रधान कारण धार्मिक पूर्वाग्रह रहा है । पद्मावत की भाषा का (ठेठ अवधी का) पुरानापन गढ़ता एवं शुद्ध संस्करण का अभाव भी जायसी की उपेक्षा के गौण कार्रण हो सकते हैं । और यहीं कारण है कि उनका
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