मलिक मुहम्मद जायसी और उनका काव्य | Malik Muhammad Jayasi Aur Unka Kavya

Malik Muhammad Jayasi Aur Unka Kavya by शिवसहाय पाठक - Shivasahaya Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तृतीय खण्ड के अन्तर्गत 'ज़ायसी का रहस्यवाद', 'जायसी की काव्यभाषा' के अतिरिक्त 'सुफीमत' का विशद एवं शोधपूर्ण विवेचन करते 'हुए जायसी की प्रेंम- साधना को परिचय दिया गया है । 'प्रमाख्यानक परम्परा और जायसी' के अंतर्गत शुद्ध भारतीय और सूफी प्रेंमाख्यानों के उद्भव एवं चिकास का शोौधपूर्ण परिचय दिया गया है । साथ ही सुफियों की देन और जायसी के महत्व का मूल्यांकन भी किया गया है । जायसी ने एक विराट समन्वय की चेष्टा की हैं । यह समन्वय हैं सुफी प्रेम पंथ और भारतीय योगपंथ का, अध्यात्म और .काव्य का, हिन्दू संस्कृति और मुस्लिम संस्कृति का, इतिहास की संभावनाओं और कष्पना-विलासों का, भारतीय भर फारसी शैलियों का, लोक-तत्वों और काव्यतत्वों का, परम्परावाद और .स्वछ॑ंद- तावाद का । इस विराट समवन्य की चेष्टा ने जायसी को भारतीय साहित्य के शीर्ष॑स्थ कवियों में प्रमुख स्थान दिया है । वस्तुत: मध्ययुगीन हिन्दी कविता में महात्मा तुलसीदास और जायसी ही सर्वश्र ष्ठ॒प्रबन्धकार हैं । मेरी प्रस्तुत साधना गुरुवर आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के चरण-कमलों में सम्पन्न हुई है । उन्होंने अत्यन्त प्रेम, उत्साह और वत्सलता के साथ इस प्रबस्ध के लिये विषय दिया-निदेश किया और अत्यन्त व्यस्त रहने पर भी इस विस्तुत प्रबन्ध का एक-एक अध्याय देखा, सुना और सुधारा है । यह उन्हीं के आशीष और सुयोग्य निर्देशन का परिणाम है कि “चित्ररेखा' “'कहरानासा, और 'मसला' (या मसलानामा ) नामक जायसी की विलुप्त कृतियां प्रकाश में आ सकी हैं । उन्हीं का आश्रय पाकर मैं इस कार्य में प्रवूत्त हुआ--वस्तुत: इस प्रबन्ध की अच्छाइयों का सम्पूर्ण श्रेय पूज्य आचार्य जी को है । उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने की. धृष्टता कंसे करूँ ? प्रस्तुत कृति के साथ उनके चरण-कमलों में करबद्ध श्द्धावनत हूं, वस्तुत: उनके अनंत 'उपकार और अनुग्रह' से उक्ण होना असम्भव है । आचाय॑ं पं० विश्वनाथप्रसाद मिश्र, डा०. वासुदेवशरण अग्रवाल, स्व० पं० नाधूराम प्रेमी, प्रो० शशिकषेखर नैथानी, भाई चन्द्रबलीसिंह, प्रो» रामलघण शुक्ल, डा० राकेश गुप्त, आदि विद्वानों से मुझे प्ररणाए-सहायताए' मिली हैं । मैं इनके प्रति विनम्र कृतज्ञता ज्ञापित करता हुँ । बम्बई दिश्वविद्यालय के पुस्तकालयाध्यक्ष श्री मार्शल जी ने. पुस्तक-पत्र- पत्रिकाओं तथा अलश्य हस्तलिखित प्रतियों से मेरी सहायता की है, मैं उनका आभारी हूँ । प्रस्तुत प्रबन्ध लिखने में जिन पुस्तकालयों से, जिन भांडारों से, जिन हस्तलिखित प्रतियों से तथा जिन विद्वानों से और जिनकी कृतियों से मुझे किचित भी सहायता मिली है, उन्हें मेरा धन्यवाद । जिनके मतों का मैंने खंजन-मंडन किया है, उन सबके प्रति मेरी श्रद्धा हैं । मैं समझ नहीं पा रहा हु कि भाई डा० प्रेमशंकर




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