शेखर एक जीवनी विविध आयान | Shekhar Ek Jeevani Vividh Aayam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shekhar Ek Jeevani Vividh Aayam by डॉ. राम कमल राय - Dr. Ram Kamal Rai

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. राम कमल राय - Dr. Ram Kamal Rai

Add Infomation About. Dr. Ram Kamal Rai

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूमिका ः 7 आधारित कार्य-कारण परंपरा की स्वीकृति है। जो व्यक्ति को और कठोरता और निर्ममता से नर्मनिष्ठ बनाती है । शेखर के चित्र को भी प्राय: सही परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा गया है । वह एक आप्रही व्यक्ति है, धुन का पक्का है । सच्चे आचरण वाला है, ईमानदार है और जहाँ एक ओर राष्ट्र और समाज के लिए पूरी तौर पर समर्पित है वहीं अपने अंतर के सत्य के प्रति भी उतनी ही गहराई से निष्ठावान और समर्पित है । उसका चरित्र सामान्य नहीं है । इसलिए सामान्य कसौटियों पर उसे कसा भी नहीं जा सकता । वह ईमानदार इतना है कि अपने जीवन में उतरने वाली प्रत्येक नारी को अपने प्रत्यवलोकन के क्रम में अपने सम्बन्ध की परिधि में यथोचित स्थिति में रखकर देखता है और मजे की बात यह है कि उपन्यास में “'प्रवेश' में वह उनके क्रम को भी निर्धारित कर देता है। सबसे पहले शशि फिर बहन सरस्वती, फिर शारदा शांति और फिर शशि ओर शशि का निरंतर विस्तार। सरस्वती उसे बहनापा देती है और उसमें लिपटा हुआ सख्य और एक अनिर्वचनीय स्नेह । शारदा उसे किशोर जीवन की प्रथम रागानुभूति से कुरेदती है और उसे एक अपूर्व राग-सामर्थ्य के बोध तक ले जाती है, ओर पृथक हो जाती है । शांति मृत्यु की गोद में बैठी हुई है, किन्तु उसके भीतर जीवनानुभूति इस कदर समाई हुई हे कि वह शेखर को एक प्रशांत रागात्मकता से आवृत्त कर देती है । उसके संस्कार इतने गहरे हैं कि वह मिटते-मिटते भी शेखर के भीतर रागानुभूति को कुरेद जाती है। माँ उसके प्रति किसी क्षण में आविश्वास व्यक्त करती है जिसे वह ताड़ लेता है ओर इतना आहत अनुभव करता है कि सब कुछ छोड़कर निरुद्देश्य घर से निकलकर एक धुन में भागता हुआ न जाने कितनी दूर चला जाता है । भूख और प्यास के मारे निढाल पड़ जाता है| पूरी रात ठंडक में एक अनजान जलाशय के किनारे सोकर बिताता है । और फिर चुपचाप लौट तो आता है घर पर किन्तु वह 'वही' नहीं रहता । माँ का यह अविश्वास फॉँसी के संभावित क्षण तक उसका पीछा नहीं छोड़ता क्योंकि वहीं से तो उसे सबसे अधिक विश्वास की अपेक्षा थी | इस प्रकार इन सारे सम्बन्धों के संदर्भ शेखर को एक परिपक्व व्यक्तित्व देने में अपना महत्त्व रखते हैं । वह कुछ भी छिपाता नहीं है । इसलिए इन सम्बन्धों के बीच से निर्मित होने वाले शेखर को पहचानते हुए यह बात स्पष्ट तौर पर उभरती है कि शेखर के इन सारे सम्बन्धों में मांसलता, ऐन्द्रियता अथवा वासना के अनुभव नहीं के बराबर हैं । यह प्रश्न किया जा सकता है कि कया यह स्वाभाविक है । किन्तु शेखर के उस जीवन संदर्भ को और आयु की जिस मंजिल पर वह खड़ा है उसे देखते हुए तो यह बात न केवल स्वाभाविक लगती है बल्कि उसके चसत्रि की एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर कर आती है। वह अपने आयु के बीसवें वर्ष में है, क्रांतिकारी है, राष्ट्र के प्रति समर्पित है । इसलिए उसमें वासना या यौनेच्छा रंचमात्र भी अंकुरित नहीं हो सकी । जिस रागानुभूति से उसका व्यक्तित्व संवलित है वह एक भिन्न प्रकार की अनुभूति है जो उत्सर्ग की शक्ति देती है। किसी प्रकार की स्थूल माँग नहीं करती । यह सब कुछ शेखर एक जीवनी की संरचना में किस प्रकार अनुस्यूत हुआ है--यह प्रश्न भी बार-बार उभरा है और बहुत-सी बातें उस संदर्भ में भी कही गई हैं । इस उपन्यास की संरचना पर “ज्यों क्रिस्तोफ' का कितना प्रभाव है ? यह चर्चा भी कई प्रकार से उभर कर आई है । यह उपन्यास भी प्रत्यवलोकन की शैली में लिखा गया था और अशेय का पढ़ा हुआ उपन्यास था । निश्चय ही कहीं-न-कहीं उसने अशेय को प्रभावित भी किया था, किन्तु, अज्ञेय जिस बिन्दु पर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now