व्यक्तिव्यंजक निबंधों का संकलन | Vyaktivyanjak Nibandho Ka Sankalan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.57 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)14 भूमिका वयक्तिक अनुभव का महत्त्व कभी कम होता है उसके परिवेश के शब्द कथा- नक स्मृतियाँ गूंजें निरन्तर आत्मीय सम्बन्ध की स्थापना में सहायक होती हैं । दूसरे शब्दों में विशेष के अभिव्यंजन के द्वारा हो सामान्य आता है और इस प्रकार विशेष की प्रतीति अत्यंत घरू ढंग से की जाती है कि बह विशेष सबका विशेप हो लिखनेवाले का ही नहीं जिसके लिए लिखा गया है उसका भी । जसा कि प्रारंभ में कहा गया था--व्यक्तित्व को साथ लिए चलना और हाथ अलग किए चलना निबन्धकार के लिए आवश्यक है । वह अपने व्यक्तित्व के साथ ही मजाक कर सकता है उसे कोस सकता है उसे थिसूर सकता है पर उसे छोड़ नहीं सकता । उसके लिए व्यक्तित्व वेयक्तिक स्तर का सम्बन्ध स्थापित करने का एक सद्दक्त माध्यम है। व्यक्तित्व के साथ यह सनग्नता कि वह माध्यम है बड़ी कठिन प्राथना है साघना से आती हैं । व्यक्तिव्यंजक निबन्ध लिखनवाले हिन्दी में इसलिए थोड़े हैं और जो हैं वे व्यक्तिव्य जक निबन्धों के अलावा भी कुछ लिखते रहते है व्यक्तिव्यजक निबन्धकार के रूप मे मेरा निज का अनुभव यह है कि निबन्घ जल्दी लिखा नही जाता । इसी सन्दर्भ मे लोग मूड की बात भी करते है । मूड आने पर ही ब्य क्तब्यंजक निवन्ध लिखा जा सकता है । पर जहाँ तक मेरा अपना अनुभव है मूड आने पर केवल कविता या छोटी कहानी ही लिखी जा सकती है । व्यक्तिव्यंजक निबन्घध के लिए एक मीतर को घुमड़न ज़रूरी होती है । वह घूमडन बार-बार होती रहे कई दिनो तक मन को उन्मथित करती रहे भौर लिखने की लाचारी उपस्थित हो जाय यह पहली शत है निबन्ध-लेखन की । दूरी शर्त है--सामान्य जीवन की एक छोटी-सी घटना जब व्यापक सामा- जिक सन्दभ से और उससे भी आगे जाकर विघ्व-चेतना के किसी तार से जुड़ जाय और एकसाथ सभी तार झफत हो सके ऐसा सामजस्य बद्धि में उपस्थित हो जाय । एक तीसरी शत भी है--सब कुछ न कहे जाने का लोभ संवबरण करने को क्षमता हो क्योंकि निवन्धकार रिपोर्टर नही है। उसके मन में यह लोभ तो ज़रूर उठता है कि कितना कुछ कह जाय । किन्तु यदि वह समर्थ निबन्धकार है तो उसमें से कुछ छाँट देता है। जमे कि एक सम्थ उपन्यास- कार जीवन की समग्र घटना को लेते हुए भी बहुत से अनावदयक सन्दम छोड़ता रहता है और बहुत से असम्बद्ध दिखनेवाले पर भीतर से जुड़े हुए बाहर के संदर्भ जोड़ता रहता है उसी प्रकार एक व्यक्तिव्यंजक निबन्धकार प्रस्तुत के विषय में सब कुछ न कहकर दूर अप्रस्तुत से उसको जोड़ने के लिए केवल उन्हीं अंगों को उभारता है जो व्यापकता भौर गहराई लिए हुए हैं ।
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