काला ब्राह्मण | Kala Brahaman

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Kala Brahaman by श्री शरण - Shree Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुम्हे कल से महामात्य कांत्यायन के प्रधानात्व मे मंत्री पद को सम्भालना पडेंगा । इतना कह्ठ कर वे शकटार को अपने साथ ही बन्दीगह से निकाल लाए । महाराज के अन्तिम आदेश को सुन कर शकटार का हृदय क्षोभ से भर उठा । उनके ओष्ठ कुछ कहने के लिए उद्यत हुए- परन्तु समय ठीक न समझ कर वे शान्त ही रहे । रात्रि के प्रगाढ अन्धकार से मद्ाल आगे की ओर बढ़ती गई और दो मानवी छाया उसका अनुसरण करती रही । समय बीतता रहा । कार्य चलता रहा । लेकिन बूढ़ा शकटार का हृदय अपने पुत्रों की मृत्यु का कारण महाराज को समभ बेठा । वहू अभी इस वेदना को भी न भुला पाया था कि अपमान की ज्वाला ने उसके जीणं॑ शरीर को भुलसित करना आरम्भ कर दिया । उसनें महाराज से अपने अपमान का प्रतिशोध लेने की चेष्टा आरम्भ की । इस शुभ का्ये के लिए उन्होने चाणक्य को हो श्रेष्ठ व्यक्ति सगभका . बयोकि वे उसके उग्र स्वभाव से पुर्णतया परिचित थे । एक दिन वह अवसर भी आ गया- महाराज नें कृत्या यज्ञ के लिए किसी मर्हाषि को बुलाने के लिए शकटार को कहा । शकटार ने विष्णुगुप्त चाणक्य को यज्ञ स्थल पर प्रधान ऋत्विज के आसन पर सुशोभित करके स्वयं पाठलि-पुत्र से तक्ष - शिला को प्रस्थान कर दिया 1. महाराज ने यज्ञ स्थल पर पहुँच कर देखा- प्रधान ऋत्विज के स्थान पर कुरूप काला अनिमन्रित ब्राह्मण । १८ |




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