तीसरी औरत | Tisari Ourat

Tisari Ourat by अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीसरी श्रौरत गर्थियां घरों से बाहर जाती हैं, पर जव मीना अपने पीहर आई चको लगा--जंसे एक अर्थी घर में भा गई हो । सरकारी मुहरें लगा हुआ एक खत मीना के कफ़न की तरह था । यपि उसमें मीना के मरने की खबर नहीं थी, देश की सीमा पर उसके पांके सिपहिया' के मरने की खबर थी, फिर भी यह खत मीना के फन के समान था | कई वालें भौरत सहज ही जानती हैं । यह भी उन्हीं में से एक सच त थी कि इस देश में मद एक वार मरता है, पर उसकी मृत्यु के वाद सकी भौरत जितने समय जी वित्त रहती है, न जाने कितनी वार मरती है सो जव मीना मर्यी की भांति पीहर आई, घर की गूंगी दीवारें ी श्राहि-नाहि करने लगीं । जव ईश्वर मनुष्य की जीभ काट देता है, वह कुछ वोल नहीं कत्ता मीना के माता-पिता जंसे गूंगे होकर रह गए । घर खुला था । घर के जीवों के पास शुरू से ही अपनी-अपनी छत १ और अपनी-अपनी दीवार । छोटे से छोटे बच्चे का भी घर में उस के 'म का हिस्सा था, सो मीना जिस समय भाई, सीधी अपने कमरे में सतरद चली गई जंसे कभी स्कूल या कालिज से आकर जाया करती ही । पर घर के कमरों के दरवाजे जो शुरू में साघारण तौर पर खुलते पैर साधारण तौर पर वन्द होते थे, पिछले वीस बरस से शापित थे । व चह विवाह या तलाक, जन्म या मृत्यु जैसी घटनाओं के हाथों से श्दे




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