श्रंगार शतक | Srangar Shatak
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.79 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १० )
का शौक था। शाइज़ादे के छाथ में ढो कबूतर थे । वह उन्हें
'किसौ को पकड़ा, और कबूतर दरवे से निकालना चाइता था ।
पासदी मेहर खड़ी थो । शाइज़ादे ने कहा-“मिहर ! ज़रा हमारे
कावूतरों को तो अपने छाथों में पका रहो ।” मेहर ने कहा-
“बुत भच्छा, लाइये ।” शाइज़ादे मे मेहर को कबूतर थमा दिये
और भाप आगे दरवे को ओर चला गया । इतने में एक कबूतर
'किसो तरह मेहरुलिसा के दाथ से उड़ गया। थाइक़ादे ने
आकर पूछा-“हमारा एक कबूतर कई +” सेहर ने कहा
“बह तो उड गया”. शाइज़ादे मैं पूछा-“कैसे उड़ गया?”
सेइर ने उस समय भीलो-भाली, पर एक अलोव अटा के साथ
हाथ का दूसरा कबूतर भी छोड़ते हुए कदा-“शाइजाडे ! ऐसे
उड़ गया” शाइलादे का दिल आज के प्ले मेहरुतिसा पर
नहीं था, पर इस वक्त को एक झ्रदा ने शाइलादे को सेइस-
'चिसा का शुलाम बना दिया । आज पीछे वक्त मेहर की जन
भर न भूला। उसने सेइरुबिसा को अपनों वीवो बनाने के
लिये ' वही कौशिगें वो, पर उसे कामयाबी न हुई ; क्योंकि
दशा एक सासूली सरदार को लगी से दिन्दुसान के
शाइलारे को शादी करना उचित न समकते, थे। उन्होंने
भगड़ा मिटाने को मेहर को शादी शिर '्रफ़गन के साथ कर
डी। सलौम का वश न चला; पर वह मेहर को भूल नहीं ।
लव व तजूतैथादी पर बैठा, उसने सदर को बढ़ाल से मंगवा
कर, उसके कोमल कदसों में अपना ताजगाही रख दिया भोर
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