श्रंगार शतक | Srangar Shatak

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Srangar Shatak by बाबू हरिदास वैध - Babu Haridas Vaidhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १० ) का शौक था। शाइज़ादे के छाथ में ढो कबूतर थे । वह उन्हें 'किसौ को पकड़ा, और कबूतर दरवे से निकालना चाइता था । पासदी मेहर खड़ी थो । शाइज़ादे ने कहा-“मिहर ! ज़रा हमारे कावूतरों को तो अपने छाथों में पका रहो ।” मेहर ने कहा- “बुत भच्छा, लाइये ।” शाइज़ादे मे मेहर को कबूतर थमा दिये और भाप आगे दरवे को ओर चला गया । इतने में एक कबूतर 'किसो तरह मेहरुलिसा के दाथ से उड़ गया। थाइक़ादे ने आकर पूछा-“हमारा एक कबूतर कई +” सेहर ने कहा “बह तो उड गया”. शाइज़ादे मैं पूछा-“कैसे उड़ गया?” सेइर ने उस समय भीलो-भाली, पर एक अलोव अटा के साथ हाथ का दूसरा कबूतर भी छोड़ते हुए कदा-“शाइजाडे ! ऐसे उड़ गया” शाइलादे का दिल आज के प्ले मेहरुतिसा पर नहीं था, पर इस वक्त को एक झ्रदा ने शाइलादे को सेइस- 'चिसा का शुलाम बना दिया । आज पीछे वक्त मेहर की जन भर न भूला। उसने सेइरुबिसा को अपनों वीवो बनाने के लिये ' वही कौशिगें वो, पर उसे कामयाबी न हुई ; क्योंकि दशा एक सासूली सरदार को लगी से दिन्दुसान के शाइलारे को शादी करना उचित न समकते, थे। उन्होंने भगड़ा मिटाने को मेहर को शादी शिर '्रफ़गन के साथ कर डी। सलौम का वश न चला; पर वह मेहर को भूल नहीं । लव व तजूतैथादी पर बैठा, उसने सदर को बढ़ाल से मंगवा कर, उसके कोमल कदसों में अपना ताजगाही रख दिया भोर




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