आर्यसमाज का इतिहास भाग 1 | Aaryasamaaj Kaa Itihaas Pratham Bhaag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम परिच्छेद । (४) कौन २ से कर्म बुरे हैं जिनका दण्ड मिलता है और दण्ड देने को तथ्यार हो जाता है उसे सिवाय अन्यायी और अत्याचारी के कुछ नहीं कह सकते । इस सारे तक॑ का परिणाम यह निकलता है कि सुष्टि के आरम्भ में एक नियम संग्रह का होना आवश्यक है । मनुष्य की बुद्धि बिना सहायक के स्वयं ही सब्र कुल्छ उद्घावित नहीं कर सकती | वह ज्ञान जो सृष्टि के आदि में मनुष्यों को ईश्वर की ओर से प्राप्त हुआ घधम का मूल स्रोत है । वह मूल स्रोत कौन सा है? दमारा उत्तर है कि तऋगादि वेदों की संहितायें ही धर्म के मलम्रात हैं । वह क्यों (१) धर्म का मूल स्रोत वद्दी हो सकता है जो सृष्टि के झारम्भ में हुआ हो । अन्य काई भी घर पुस्तक सृष्टि के आरम्भ में होने का दावा नहीं करती । पारसियों की घम पुस्तक जिन्दावस्था को बने लगभग ३८०० साल हुए हैं । डा० होग उसके समय को पीछे ले जाते हैं तो ४१०० सालों से अधिक पीछे नहीं ले जा सकते। पेटाटवक ( ?पिघटटी 3 को बने ३४९६० साल हुए हैं । बाइबिल का समय अधिक से अधिक १९२४ समझा जा सकता है यद्यपि इसमें सन्देह है कि बाइबिल का कोई भी भाग क्राइस्ट के समय में बन गया था । कुरान को बने १४५४० साल से श्रधिक नहीं हुए कम ही टुए है । यह ईश्वरीय ज्ञान होने के अन्य उम्मेदवारें की दशा है पर वेदों की दशा दूसरी ही है । इसमें तो सन्देह दी नहीं कि वेद इन सबसे पुराने हैं । मेक्समलर ने बहुत समय पूव कहा था कि वेद हमारे लिए मनुष्य बुद्धि के सब से पुराने परिच्छेद को दिखाने वाला है जिस समय यह शब्द लिखे गये थे तब से झाज तक किसी नाम लेने योग्य विद्वान ने इस उक्ति का खण्डन नहीं किया है । यह सबसम्मत बात है कि संसार के पुस्तका- लय में वेद सब से प्राचीन पुस्तकें हैं । सृष्टि के आदि में होने के और सब उम्मेदवार वेदों के सामने ढीले पड़ जाते हैं । (२) ज्यों २ खोज गहराई में जा रही है त्यों २ वेद का समय पीछे ही पीछे चलता जाता है । हम नीचे एक तालिका देते हैं जिसपते पता लग जाएगा कि वेदों का समय किस प्रकार पीछे ही पीछे चलता जा रहा है ।




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