हास परिहास | Haas Parihaas

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Book Image : हास परिहास  - Haas Parihaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हास-परिहास कहा श्रौर सुनाया-- इस कुकर की दाल यहाँ नहीं पकने की । कहीं श्र चलो | दोनों दिल श्रौर कुकर लटकाये बाहर निकले । बाहर निकलते ही मैं बोला देखा श्राखिर में खुला । इसके बीस रुपये देना चाहता था । सौ प्रतिशत लाभ | नमिता ने सुभाया तो कया बात है । दुकानें तो बहुत हैं । हम दोनों बाज़ार में साइन बोडे देखते चले जा रहे थे । हमददे दुकान -- पुरानी चीज़ों को बेचते खरीदते हैं । नाम पढ़कर ही बड़ी सान्त्वना मिली | नमिता बोली तुम जाकर इसे बेच श्राश्रो । मैं सामने कपड़े की दुकान पर मिलुँगी। में धड़कते दिल से आ्रन्दर घुसा । काउणटर पर खड़े आदमी ने पूछा-- कहिये ? जैसे पुलिस स्टेशन पर रपट लिखबवाने वाले से पूछा जाता है | मैंने कुकर काउणटर पर रख दिया । बोला यह कुकर हे । च्छा । बिल्कुल नया सा है । फिर |? पे इसे बेचना चाहता हूँ । उसने श्रन्दर श्रावाज़ लगाई-- रफीक मियां ।? चश्मा पहने एक सज्जन बाहर निकले । उन्होंने चश्मा जो श्राँख की बजाय नथनों पर लगा रखा था नाक पर ठीक बिठाया । क्या है साहब ? यह बाबू जी हैं | उन्होंने चश्मे में से मुे घूरा ।




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