पहला शूद्र | Pahla Shudra
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
400 KB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
परिचय
नाम - सुधीर मौर्य
जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर
माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य
पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य
पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य
शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा.
सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन.
कृतियाँ-------
1) एक गली कानपुर की (उपन्यास)
2) अमलतास के फूल (उपन्यास)
3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास)
4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास)
5) मन्नत का तारा (उपन्यास)
6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास)
7) वर्जित (उपन्यास)
8) अरीबा (उपन्यास)
9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास)
10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास)
11) बलि का राज आये (
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला शूद्र
(प्रथम खण्ड)
एक भीषण विस्प्लेट हुआ और तीव्र ध्वनि के साथ पाषाण खण्ड हवा में कपड़े की गेंद नै तरह उछल पड़े। गहरे भूरे चुएं से वातावरण कसैला और अन्धरमय हो गया। इस धुन्ध से निर्मित अन्धकार में हर-हर की तीव्र ध्वनि एवं बैग के साथ जल नगर में सीमा में प्रवेश करने लगा।
कुछ ही समय में समस्त ग्रामवासियों में चीख पुलर मव उठी ... इस चीख पुकार के मध्य में होई प्रौढ़ कंड लड़कर चिल्लाया, "वो वैखो! इन्द्रजनों ने तटबन्ध ध्वस्त कर दिया।
उस प्रौढ़ के कंठ से लैई अन्य स्वर निकलता, उससे पूर्व ही जल का भीषण प्रवाह उसे अपने साथ बहा ले गया।
अभी ये पाषाण के खण्ड के बगूले उठ ही रहे थे कि एक दूसरा विस्फोट हुआ और उसके पश्चात तीसरा, चौथा और पांचवा भी। और इस प्रकार आच के सहायक इन्द्र ने मेघवृत्र के बनायै पांच बांध का विध्वंस कर दिया।
ये बांध सप्त-मैथव के महराज मेघवृत्र ने अपनी प्रजा की उन्नति और उनके सुखमय जीवन के लिये बनवाये थे। इन बांधों से एकत्र हुए जल उपयोग कृषि एवं अन्य कार्यों हेतु किया जाता था। सप्त-मैथव के निवासी इनकी सहायता से वर्षा ऋतु के बिना ही सरलता से कृषि कार्य सम्पादित कर लेते थे। इस प्रकार उनके पास प्रचुर मात्रा में अनाज और पशुधन था। और वे हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ से अति विकसित पुरों में निवास करते थे।
सप्त-सैंथव में आर्यों के प्रवेश करते ही उनका यहां के मूल निवासी पणिय एवम् किरातों के साथ टकराव आरम्भ हुआ। किरात कै पुर पर्वतों पर स्थिति थे अतः आर्यों का पहला टकराव पणियों के साथ हुआ। आर्यजन इन्हें *असुर” कहकर सम्बोधित करते थे क्योंकि आर्यों की सहायक जाति जिनका नायक इन्द्र था। वे सुर कहलाते थे।
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