श्री कृष्ण चरित्र | Shri Krishna Charitra

Shri Krishna Charitra by सूर्यकुमार वर्मा - Suryakumar Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_पूरवेस्थति । ११ परन्तु इस काम में सुभे कोई सहायता देने वाला. सददीं 77 मैं तुम्दारी सद्दायता करूंगा शासंख्य गोप तुम्हारी सद्दाय्य करंगे । मथुरा वासी प्रजा तुम्हें देख कर तुम्हारी मदद करेगी । मैंने सुना है कि कंस की मृत्यु देवकी के श्राठवें पुत्र से होगी दूसरा कोई उसे नहीं मार सकता । श्रसुर ने कहा।-- चह देवकी का श्ञाठवां पुत्र कहां है / सेंने पेसा सुना दे कि नागवंशीय राजा वासुकी नें उसे कहां छिपा रक्‍्खा हे । कुष्ण तुम्द्दीं तो देवकी के श्ाठयें पुत्र हो । इप्रसेन वसदेव झौर देवकी के कैद होने से में बहुत दुःखित था | मानवद्दद्य का धर्म बुद्धि के लिए श्रगस्य है । मेंने मथुरा उद्धार का संकठप किया । मेरा कतेंव्य कम क्या है यद्द बात मेरे हृदयनपट पर झंकित हो गई। मेने झपने कतंब्य को जान उसके श्दुसार कर्म करना शारम्भ किया । इन्द्र कौन हैं ? मेघ वर्षा इत्यादि वी वियेजना करके मैंने उसके खत्यश्ञान फैलाने का उद्योग किया । सुष्टि-क्रम के झनुसार पानी बरसता है। सूय चन्द्र और तारे जिस नियम पर चलाये गए हैं उसी नियमानुसार मूमण करते हैं । सृष्टि को-प्रकति को--उसी के गुण धर्म श्रौर नियमानु- सार चलाने चाले इसे झखिल विश्व के मालिक एक सात्र घिष्णु भगवान्‌ हैं । उन्हीं विश्वरूप नारायण की श्राराधना करनी चाहिप । सादपद मास में गोचधेन पवत के शिखर पर स्वप्न में पहले पहल जो मूर्ति देखी थी उसकी मेंने झ्रपने हृदय में




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