श्री जीवंधर चरित्र | Shri Jivandhar Charitra

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Shri Jivandhar Charitra by डॉ भाई लाल कपूरचंद शाह - Dr. Bhai Lal Kapoorchand Shah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे जो के निष्कटक राज्य करनार आ राजा बुद्धिमानोनों शिरोमणि हतो तोपण पोतानी राणी विजयामा रातदिवस आ- शक्त रहतो हतों जने कई जाणतों नहीतो. ९. जे पुरुषोनुं चित्त दिषयामां लागेटुं रहे छ तना बधा गुण नाच पामे छे. तेनाप्ा पाण्डित्य रहेतु नथी मनुप्यभाव रहेतो नथी कुर्लनता रहेती नथी अने सच्चाइ रहेती नथी १०. कामी माणस कोइ बातथी डरतो नथी पारकी सेवा सबधी दौनताथी चाडी खावा थी. निर्दाथी जने पोतानों पराभव थवाथी पण-तिरस्कार थवाथी पण डरतों नथी ११. कामथी पीडीत माणस भोजन दान विवेक वैभव अजने मानादिक स्वने छोडी दे छे बॉजु तो उप. परतु पोताना प्राणनों पण त्याग करी द छे. १२. पछी ते राजाए एवु घायु के बच राज्य काष्ठांगारने सोपी दउ कारणके जे लोक राग के अनुरागथी आधठा होय छे तेने विचार के अविचार होता नथी अर्थात्‌ ते ज्या सुधी सारी रीते ओठखवामा आवे नह त्या सुधी सुदर माउम पड़े छे १३ ते वखते तेना मुख्य मुख्य मत्रिओए आवीने कश्यु के हे देव आपने विदित छे अजने आप जाणों छो तोपण अमारी आ प्राथना साभठो १४ ज्यारे राजाओए पोताना हृदयपर पण विश्वास करवो जोइए नहिं तो पछी बीजा मनुप्य उपर भरोसो राखदा सबधा अनुचित छे राजा नटोनी माफक आचरण करे छे अर्थात्‌ फक्त वहदारथी बिश्वा- सपात्र देखबामा आवे छे लोक समजे छे के अमारा पर




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