स्वास्थ्य कला और गृह प्रबंध | Swasthaya Kala Or Grah - Prabhand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारे शरीर के मुख्य श्ग श्दे रुधिर बाल श्और नर्खों के अतिरिक्त शरीर के प्रत्येक भाग में पाया जाता है | यही कारण है कि हमारे शरीर के किसी भाग में चाहे कितनी दी पतली सुई चुभोई जाय कुछ न कुछ रुघिर निकल श्राता है | परन्तु इसका तात्पय्य यह नहीं है कि रुघिर शरीर में इस प्रकार रहता है जिस प्रकार मशक्त में पानी वरन्‌ यह सम्पूण शरीर में फिरता रहता है। रुघिर श्रगणित छोटी-छोटी नलियों द्वारा शरीर के एक माग से दूसरे भाग में घूसा करता है । शरीर के मिन्न-मिन्न भाों में रुघिर दिल से पहुँचता है जो छाती की बाई श्रोर स्थित है श्रौर सदैव घडकता रहता है |. ) दिल छाती की दृड्डी के नीचे बाई श्रोर स्थित है | यह परिमाणु... में मुह्ी के बराबर है । दिल के ऊपर का भाग दाहिनी श्रोर पीछे को झुका हुश्ना है और नीचेवाले भाग की श्रपेक्षा जो कुछ नोकीला है तथा बाई श्रोर को झुका इद्मा है अधिक चौडा हे श्रौर बहुत पुष्ठ तथा मोटी पेशियों से बना हुश्रा है । इन्हीं पेशियों के बार-बार सिकुडने श्रोर फैलने के कारण दिल धडकता है । यह सिकुड़ना तथा फैलना दमारी इच्छा के बाहर है जिस प्रकार कि साँस लेने की पेशियों का सिकुडना तथा फैलना हमारे अधिकार में नहीं है । श्रतएव दिल न तो मारी इच्छा श्र बरस से घड़कता है और न हमारे रोकने से रुकता है | दिल के भीतर सदा रुघिर भरा रहता है । भीतरी भाग पुष्ट पेशियों से ्चार जानो में विभाजित है जिनमें से दो दाहिनी श्रोर श्रीर दो वाई ओर कि हैः) ऊपर ख़ाने में एक-एक छेद है । इन छेडदों के द्वारा ऊपर के खाने नीचे के ग़ार्नों से मिले हुए हैं | इन छेदों पर एक-एक परदा है जो साधारण किवाडों की भाँति केवल एक ही श्रोर को खुल सकता है | ये परदे इस प्रकार खुलते हैं कि ऊपर के गवारनों का रुधिर नीचे के




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