आलोचनादर्श | Alochanadarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.35 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अर्थ श्रौर परिसाषा ७
सत्तकता के साथ उसकी विगहंशा करनी चाहिए। क्योंकि
हूषादि की प्रेरणा से व्यथ के लिए (अकारण ही) श्रदुचित
श्राक्षेप या निन््दा करना दुजनों श्रौर नीचों का काम है।
अस्तु, निष्कर्ष रूप में कद सकते हैं कि आलोचना का
सूल अर्थ है निणय करना श्रौर ्राललोचक से तात्पयं है उस
सुयाग्य व्यक्ति से, जा निर्थायक के समान किसी रचना के
गुशों श्रौर दोषों का यथोचित निरीक्षण तथा विश्लेषण करके
उनके ही श्राघार पर उस रचना का निशय करता है।
साहित्यिक या साहित्य की झ्राह्माचना का झ्रथे है किसी
साहित्यिक रचना का उसके गुण-दोषादि के झाधार पर निशंय
करना, रचना-कला की कसौटो पर उसे कसकर परखना श्रौर
उसमे साहित्य के लक्षणों की चरिताथता देखना ।
समसालाचना-साहित्य या श्रालाचनात्मक साहित्य से
तात्पये है साहित्य या साहित्यिक च्षमता-पू्ण उस रचना
से, जिसमें किसी साहित्यिक रचना-कल्ा के कौशल श्रथवा
किसी कवि या लेखक की कृति के निशंयात्मक रूप से झध्ययन
करने का आकार-प्रकार दिखलाया गया हो, उसकी मार्मिक
विवेचना श्रौर विशद व्याख्या स्पष्टता श्रौर सुबाधता के साथ
की गई हो । जिसमें रचना-कला के सिद्धान्तों एवं नियसों
की उपयुक्तता, उपयोगिता श्रौर प्रयोगिता (व्यावहारिकता या
प्रयुक्त करने की विधि या परिपाटी) प्रकट की गई ही ।
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