श्री रामदास जी महाराज की वाणी | Shri Ramdasji Maharaj Ki Bani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.23 MB
कुल पष्ठ :
507
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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साधना-पद्धतियों श्रथवा सम्प्रदायों ने जन्म लिया, वे प्रत्यक्ष श्रथवा परोक्ष रूप से श्री
रामानन्दीय वैष्णव सम्प्रदाय से ही उद्भूत्त प्रतीत होती हैं ।
रामस्नेही सम्प्रदाय--
राजस्थान की रामानन्दीय सन्त-परम्परा की पृष्ठमूमि मे श्रव हम रामस्नेही
सम्प्रदाय के उद्भव, विकास श्रौर इसकी साधना-पद्धति तथा दर्शन की सक्षेप मे विवेचना
करेंगे ।
राजस्थान में रामस्नेह्दी नाम की तीन प्रमुख सम्प्रदायें है--१. सिंहथल-खेडापा,
२ रण, शौर ३ शाहपुरा । श्री सिहथल-खेडापा के मूलाचा्ये पृज्यपाद श्री जेमलदासजी
महाराज हुए, श्री रंग सम्प्रदाय के मूलाचायें पूज्यपाद श्री दरियवजी महाराज हुए श्रौर
श्री दाहपुरा सम्प्रदाय के मूलाचाय पूज्यवाद श्री रामचरणजी महाराज हुए। यद्यपि इन
तीनों सम्प्रदायो की साधना एवं साध्य पद्धतियों में प्राय सादइ्प ही है तथापि इनकी पुथक २
उत्कृष्ट परम्परायें हैं, पृथक २ भ्रादक हैं, एव पृथक २ साहित्य सम्पत्ति श्रौर पृथक रे श्राचायें
श्र शिष्य परम्परायें है। यहा हमारा श्रभिप्रेत केवल सिहथल-खेडापा सम्प्रदाय का
विवेचन करना है ।
जब हम सिंहथल्खेडापा सम्प्रदाय के श्रादि-उद्गम पर विचार करते हैं तो हमे
इसका सूत्र रामानन्द के शिष्य श्रनन्तानत्द की शिष्य-परम्परा में दीक्षित पुज्यपाद श्री
साघोदासली महाराज 'मंदानी” से मिलता है । समवत यही पहने सन्त हैं जिन्होंने रामोपासना
की परम्परा का प्रारम्म दस प्रदेश में किया ।
पुज्यपाद माघोदासजी महाराज 'मेदानी” की जीवन सम्बन्धी सम्पूर्ण सामग्री अ्रभी तक
श्रप्नाप्य है । इतिहास ग्रथो में जो कुछ सामग्री उपलब्ध हैं उसके श्राघार पर यह निष्कर्ष
निकलते हैं कि यह जाति से मालदेत भाटी राजपूत थे । माधघोर्सिहूजी इनका सास था |
जैसलमेर के एक गाव वास टेकरा के यह रहने वाले थे । ढाके डालना, गाव लुटना, राहगीरी
को संत्रस्त करना इनके कार्य थे । स्वभाव से ये बड़े क्रूर थे । किन्तु एक घटना ने इनके
जीवन-प्रवाह को ही पलट दिया ।
एक दिन यह अपने दल के साथ जगल मे एक यात्री दल को लूटने की घात मे थे ।
वह सारा प्रदेश इनके नाम से ही भयभीत था । माधो्सिह् घाडायती (डाक) के चाम को
सुन कर ही लोग कापने लगते थे । वह यात्री-दल रात्रि मे विश्वाम करने के लिए उस जगल
मे ठरुहरा श्रौर श्राम जला कर भोजन बनाने लगा । दल के सभी लोग डर रहे थे कि कहीं
माघोसिंह घाहायती श्राकर हमे लुट न ले। वे बडे कातर शभ्रौर भयाक़ान्त-से परस्पर श्रपनी-
भ्रपनी दीनता एवं असहायता का वर्णन कर रहे थे । साधोर्तिह भपेरे में छिपे हुये उनकी
यह सारी कारुखिक बातचीत सुन रहे थे । भ्रपने कुकर्मों एव उनकी करुणाद्र॑ वार्ता से
सत्क्षण इनको श्रारमग्लानी होने लगी । वे श्रपने साथियों को यह सकेत करके श्राये थे कि
ज्योंही झाग बुक जाय यात्री-दल पर झाक्रमण कर देना । यात्रियों की दयनीय दया से
द्रवित माघोसिहजी का श्रव इन यात्रियों को लुटने का प्रदन ही नहीं था । इन्होंने यात्रियों को
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