महात्मा विदुर | Mahatma Vidur

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Mahatma Vidur by नरोत्तम स्वामी - Narottam Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हज. क9५ सा विदुश श्प कि उससे सारे नगरमें एफ सयानक भीतिका संचार हो उठा । उस समय जो वाय वही चह ऊत्पन्त गरस और दशों दिशाओंक्कों जला देनेवाली थी | मेघकी गडाना ओर सीपण चषासे प्रलयकी सूचना होती थी । इन सब लक्षणोंकों देख महात्मा भीष्म महात्मा विदुर और छपाचायय--ये सब बड़े चिन्तित हुए । सब दिंतेपी और दूरदर्शी विदुरने तत्काल भाई छूतराष्टके पास जाकर इन सब अपधकुनॉंकी वात कहीं और चबोले-सहा- राज मुझे और शीष्स आदि समस्त गुरुअनोंको इस कौरव- कुछका अन्त अत्यन्त अन्घकारमय देख पड़ रहा हैं । इन अपशा- कुनों का कोई उचित प्रायश्चित भी नहीं देख पड़ता । यदि इस शिशुक्ता अधी त्याग कर दिया जाये तो सले ही कुछका कब्याण हो सके | ज्योतिषीगण कहते हैं यह बाठक अपने आदमियों के लिये यमके समान होगा इसकी वृद्धिफ़े साथ राज्य और राज- परिवारके अनन्त दुः्खॉकी बृद्धि हांगी । अतएव यदि आप कुछ और परिवारका कल्याण चाहते हैं तो अपने सौ पुत्रोमेंसे इस पक पुत्रका त्याग कर दोजिये। क्योंकि जो पुत्र कुछफे लिये अंगार स्वरूप है जिसकी बृद्धिसे कुछका शषय दोनेकी सम्भावना है ओ अधर्मका प्रतिपादूक होगा उसको पालना सर्प पालनेव्टी माँति है नीतिकार कहते हैं त्पजेदकं कुन्टस्यार्थे ब्रामस्थार्थे कुछ त्यजेत्‌। व्यजेदु पौरहिंते आम प्रथिव्यार्थ पुरत्यजेत्‌ जर्थात्‌ न्यायी राजाका कसंब्स दे कि कलकी कल्याण-




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