भारत | Bharat

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Bharat by आदित्य मिश्र - Aaditya Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्य लोग नहीं कर सऊे--और न सविष्य सें कर ही सकेंगे । इस प्रकार उसने इस चात से इंक्रार कर दिया कि कोई उसका चाघ कर सके । जंग्रेज-दाक्ति के त्रिरोय में संघ करने के लिए भारतीय इतिहातको इस उप्र रुप में जिला, सिरगन्देद, उपयोगी था । लेकिन भारतीय राष्ट्रवादी को जड़ी इन इतिहास से 3५6 हि शह है न एक प्रकार का नंति$ साइम दिया बढ़ीं पर प्राचीनता के विंपय में उतने एक सिथ्या मूल्यांकन की सावना थी संप दी । इस कारण वह प्रत्येक पुरानी वस्तु को आदरणीय स्ोर श्रद्धेद सानने छगा--चाहि वर्तमान में वह बस्तर अद्ितकारी अथवा प्रग्ति-विरों वी क्या न हां गई इतिहास के विद्यार्थी आज उन लाखों थाव्दों को पढ़ कर अपना मनोरंजन कर सकते हैं जिनफा उपयोग इस प्रकार के विवादों सें हुआ करता था --जेंसे शिवाजी के हाथों से अफ़जल न का मारा जाना नेंतिक था. अथवा अनतिक, क्या वह एक साधारण * दृव्या ' श्री, अबवा किसी छठ-योजना द्वारा उसे मारा गया था, अथवा: युद्ध के अवसर की बह यर्थोचिन हत्या थी १ भारत के त्रिटिया शासकों का यह सत्त था कि थारत, बचेंघानिक जनवादी संस्थाओं के योग्य नहीं है । इस मत के खंडन में श्री जायसवाल ने अपना विख्यात ब्रव प्राचोस दिन्दुगणतंत्र लिखा । उसमें उन्होंन यह सिंद्र किया कि प्रात्वीन भारत में * गण-राज्यों * और “ स्वायत्त छोकतंत्रवादी राज्यों का अस्तित्व था। अंग्रेल अपने को यूनान और रोम की प्राचीन संस्कृति का उत्तराधिकारी समझते थे-- इसलिए उन संस्कतियों को सर्वश्रेष्ठ मानते थे और प्राचीन सभ्यता में अपने को तथा मिश्र और पैंढेस्टाइन को सर्वेप्रथम चतलातें थे। सहाभारत में सी कोई जर्थ या तत्व हैं, इसको वे मानते ही नहीं थे । हिन्दुओं के वेद प्रामाणिक इतिहास लेख हैं, अबवा उन यूनानियों के इतिहास से भारत का इतिदास प्राचीन हूं जिनके सिकन्दर मे सारत के कुछ भागों पर एक दिन विजय प्रात की श्री -- यह भी थे नहीं मानते थें । द हमारे विद्वानों को कठोर तपस्या और संघर्ष करना पड़ा । अपनी संस्कृति की प्राचीनता प्रमाणित करने के लिए हमारे पास प्रिर्से के दस्तलेख, गीजिट के प्रिरामिड, जो ययार्थ में एक भारी प्रमाण हैं, अस्नातेन और तुतनखामेन के युगों पुराने सरक्षित वाव तथा उर और चेवीलोन में खुदाई के वाद निकले हुए प्राचीन नगर नहीं थे । विदेशी दासक का नुपुरातत्व ( आर्किलािजिकल ) विभाग इन बातों सें कोई ज्यादा रुचि नहीं रखता था | दासन सत्ता अयवा देख के घनियों से विना किसी प्रकार की सहायन पाए हुए हमारे इतिहासकारों ने अपनी सामग्री को एकचित करने के छिए बहुत परिश्रम किया । राजाओं के ताम्र-पत्र जिन पर ब्राह्मणों को दिये हुए दान अंकित थे, ग्रसूतर छेख्व, सुद्ा तथा उन लेखों जैसे अकोक-स्तंभ में लिखे मिलते हैं -- का संकलन उन िद्दानों ने किया जिससे वे अपने अतीत को प्रका में ला सकें । घार्मिक ग्रंथों में प्राप्त ज्योतिप संबंधी निरीक्ष्णों ने हमारी ऐतिहासिक रदति को इसा पूर्व तीन दर धह




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