महायोगी श्री अरविन्द | Maha Yogi Shri Arvind

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Maha Yogi Shri Arvind by डॉ. श्याम बहादुर वर्मा - Dr. Shyam Bahadur Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कमंयोगी का सन्देश १७ जनजागरण के लिए यत-तब्न दौरा भी कर रहे थे। उस समय ब्रिटिश वायसराय मिटो अपनी अनुदार नीति तथा भारत-राज्य-सचिव मार्लें की उदारता की भावना के मध्य जो तनाव था उसे देखकर भी नरमपंथी नेताओं को ब्रिटिश-कृपा पर विश्वास वना हुआ था जवकि राष्ट्रवादी नेता श्री अरविन्द तथा उनके सहयोगी यह स्पप्ट रूप से देख रहे थे कि मिटो और मालें अथवा उदार व अनुदार अंग्रेज परस्पर कितने भी विरोधी हों भारत पर ब्रिटेन का शासन बनाये रखने में दोनों एकमत ही हैं । अत मिटो -माल-सुधारों को श्री अरविन्द किचित भी महत्त्व देंने को तेंयार नहीं थे और उन्हें यह स्पप्ट दिखाई दे रहा था कि स्वतंत्रता किसी भी अंश में इनते प्राप्त होने वाली नहीं है । अंग्रेज सरकार का दमन-चक्त भी नहीं रुका था फिर अंग्रेजों की नीति को सहदयतापूर्ण मानने का कया अधे था ? अंग्रेज-दृष्टि यह समझ गई थी कि राष्ट्रवादी नेता श्री अरविन्द के तेजस्वी व्यक्तित्व के रहते हुए भारतीय समाज को भलावे में डालना असंभव है भौर इस कारण श्री अरविन्द को भारत से कहीं दूर ले जाने की निर्वासित करने की सरकारी योजना बन रही थी। इसका पता श्री अरविन्द को भगिनी निवेदिता से चल गया जिन्होंने उन्हें किसी सुरक्षित स्थान में गुप्त रूप से रहते हुए राष्ट्रीय आंदोलन को चलाते रहने की सलाह दी थी । उस समय श्री अरविन्द ने अपने देशवासियों के नाम एक खुला पत्न शी्पक से कर्मयोगी में एक विशेष लेख प्रकाशित किया था । रोचक महत्त्व- पूण तथा श्री अरविन्द की राजनीतिज्ञता का एक विशेष प्रमाण होने के कारण यह पूरा लख द्रप्टव्य है अपने देशवासियों के लिए खुला पत्र भाज भारतवर्प में अपना कतेव्य पालन करने वाले किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता की स्थिति इतनी अनिश्चित हो गई है कि वह आगामी कल के विषय में भी आश्वस्त नहीं हो सकता । मैं अभी-अभी ही अपने देश के लिए कार्य करने से पृथक एक वर्प के एकान्तवास से मुक्त होकर आया हूं जहां मैं ऐसे आरोप में भेजा गया था जिसका समर्थन करने के लिए रत्ती-भर भी विश्वसनीय प्रमाण नहीं था । किन्तु मेरा निर्दोप घोषित होकर छूट जाना न तो किसी नए आरोप में फांसे जाने से निश्चिन्त करने की वात है और न निर्वासन के मनमाने क़ानून से जिसमें आरोप लगाने की असुविधाजनक औपचारिकता की भी छुट्टी हो जाती-डै.. भ ह्दी और भी अधिक असुविधाजनक प्रमाण जुटाने की आवश्यकता इस अं विशेषतः जव ऐंग्लो-इंडियन प्रेस के शिकारी कुत्ते हम पर भौंकते पराधीनताएं ता से निरन्तर यह मांग करते रहें कि प्रत्येक व्यक्ति को जो देपों को तदनुसार कर्तव्यों की आवाज उठाए हटा दिया जाए तब व्यक्ट्रिं ः सचा की अवधि इतनी ही है जो अनिश्चित से भी अधिक ख़ राव है यहीर _ रिख़बर जोरों पर है




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