श्रीराम कृष्ण लीलामृत [भाग-1] | Shriram Krishna Leelamrit [Bhag-1]

Shriram Krishna Leelamrit [Bhag-1] by पंडित द्वारकानाथ तिवारी - Pandit Dwarkanath Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बह (९) खान से निकले हुए हैं ऐसी श्रात्मीयता का श्रनुभव करने के लिये मांगे नहीं था । इस कमी को दूर करने के लिये भगवान, श्रीरामकृष्ण का अवतार हुआ! श्री कालिका देवी के प्रस्यज्ष सहवास में निरंतर रहते हुए उसकी कृपा से पूर्गता का श्रनुभव करते हुए भी, मिन्न २ धर्मों की नियमानुसार दौक्षा लेकर, उन घर्मो के प्रत्यक्ष 'याचरण करने की उनकी श्रत्यद्धुत लीला को देखकर मन उलफन में पड़ जाता है । ” इसका क्या मतलब है ! श्री जगदम्बा में दी सब कुछ रहने का प्रयुक्त 'अनुभव प्राप्त होने पर भी पुनः यदद खटपट किस लिये ! ” यह प्रश् स्वभावतः ही उत्पन होता है । इस प्रश्न का संतोष जनक उत्तर किसी तरह नहीं ' मिलता है; परन्तु इसी में तो उनके अवतार की भपूर्वता है । श्रीरामकृ्ण का चरित्न-श्रतः उनका सम्पदाय-संसार के भावी धरम का सून्रमय श्रवतार ही है । भविष्य में केवल उस्तका विस्तार तथा स्पष्टीकरण दोना ही शेष रदेगा। इस सम्प्रदाय में जो कोई शायेंगे वे किसी भी धर्म के हों, पर उन्हें अपनी स्वजाति का दी गुरु सम्प्रदाय प्राप्त हो सकता है, और स्वघर्माय गुरू के शिष्य होने के नाते से वे घ्ापस में यथाथे चन्घु हवोति हैं । सिन्नता में भमिन्नता किस प्रकार होती है इसका उन्हें ्रचुभद होता है । भगवान, श्रीरामकृष्ण स्वयं वैदिक घर्मी थे । इसलिये वैदिक लोगों का गुरुपन दनके लिये उचित दी था । ततपश्चात्‌ उन्होंने इस्लामी धर्म की दीक्षा ली; परन्तु उससे उनका वैदिक धर्म नष्ट नहीं हु क्योंकि बर्णा- श्रम घ्म का यथार्थ पालन करके पांचवी ” परमदंस ” दीक्षा लेकर उनकी “ को . विधि: ” ” को निपेघ: ” बाली स्थिति उस समय थी । इसालिये उनके मुस॒ल- मान होने से उनकी वैदिकता को तो कोई बाधा नहीं पहुँची वरन्‌ मुसलमान शिष्यों को सुसलमान गुरु पिन गया. । यही बात इंसाई, चौद्ध श्रादि धर्मों को भी लायू. होती दै । थियासॉफी जो वात सिखाना चाहती दै पर वैसा करते समय « झपना मत दूसरों पर लादकर एक थियासोफिस्ट मत निर्माण करना चाहती है, वही बात उपरोक्त दोप से बचाते हुए भगवान, श्रीरामकृष्ण ने स्वयं अपने झावरण




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