स्त्री कवि संग्रह | Stree Kavi Sangrah

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Stree Kavi Sangrah by ज्योति प्रसाद मिश्र - Jyoti Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्घ स्त्री कवि-संग्रह के. पर पति वि व पर या जी पथ नि गा ही लीक किक लीग न गीली कक ना हि वि बि बि ब. . पधि तय जिन चरन श्रुव अटल कीनो राखि अपने सरन | जिन चरन जयलोक नाप्यो छुलन बलि उद्धरन ॥। जिन. चरन-रज परसि पावन तरी. गौतम-घरन । जिन चरन कालीहि नाथ्यों गोप-लीला-करन | जिन चरन धघरियों सावधन गरब मधघवा हरन | दासि मीरा लाल गिरिघर. गम तारन-तरन | [ १४ तुम सुनो दयाल म्हारी श्ररजी । भवसागर में बही जाति हों काढ़ी तो थारी मरजी । या संसार सगा नहिं कोड साँचा सगा रघुबरजी | मात पिता ्रौ कुटुम्ब कबीला सब सतलब के गरजी | मीरा के प्रश्न अरजी सुन लो चरन लगावो थारी मरजी | [ १४५ | _ मैं गोविंद-गुण गाना | राजा रूठे नगरी राखे में हरि रूख्या कई जाना । न हक राणा सेजा जहर-पिया में श्रमृत करि पी जाना || डविया में भेजा जो सुजंगम मैं शालग्रास करि जाना | मीरा तो दब म्रेम-दिवानी मैं साँवलिया वर पाना | [ १६ ] हरि तुम हरो जन की भीर | द्वोपदी की. लाज. राखी तुम बढ़ायों चीर ॥।




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