पिंगल - प्रबोध | Pingal - Prbodha

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Pingal - Prbodha by ज्योति प्रसाद मिश्र - Jyoti Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८. ) किसी किसी छन्द के पद में एक से अधिक यति मानी जाती हैं क्योंकि उसे पढ़ते समय कई स्थानों पर रुकना पड़ता से प्रगट कपाला दीनद्याला कौशिल्या-हितकारी | इस छन्द को पढ़ते समय से प्रगट छपाला दीनद्याला के बाद रुकना पड़ता है इसलिए इसमें दो विराम माने गये हैं । विरामों की संख्या छुन्दों के नियमों पर भी लागू होती है । किसी किसी छन्द में जहाँ यति रकक्‍खी जाती है वहाँ यति न होकर इधर उधर हो ज्ञाने से यति-भंग-दोष माना जाता है । लाल कमल जीत्यों सुदूष -भानलली के चर इस पद में वृषभानलली एक शब्द है। परन्तु यति के लिये बूष एक ओर श्रौर शान दूसरी ओर चला जाता है । गति किसी भी छंद को पढ़ने के लिए एक प्रकार के प्रवाह की आवश्यकता होती है उसी को गति कहते हैं । इसके लिए पिंगल के आचाय्यीं ने कोई ख़ास. नियम नहीं बनाया वरन्‌ इसका जानना कवि तथा पढ़नेवालों पर निभंर है । झभ्यास से गति सलीभाँति जानी जा सकती है जैसे-- वी विगत शरद . ऋतु आई । लड़िमन देखटठ . परम .सुद्दाई॥




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